Tuesday, November 3, 2009

बोलो जय सियाराम....

मित्रों, आज प्रस्तुत करता हूं-सीधे-सादे शब्दों में एक रचना। बात आप तक पहूंचे तो टिप्पणियों से सूचित करें-

डोली लूट गये खुद कहार, बोलो जय सियाराम
भारतमाता भई लाचार, बोलो जय सियाराम


विद्यालय से कालेजों तक, करता कौन पढ़ाई
डिग्री की चिंता क्या करनी, ये कलियुग है भाई

सब है बिकता खुले बाजार, बोलो जय सियाराम

ले लो रूपये के दो-चार, बोलो जय सियाराम


मन की कोई पूछ नहीं है, तन का ऊंचा आसन
जितने कम जो कपड़े पहने, उतना सुंदर फ़ैशन

रूप की महिमा अपरंपार, बोलो जय सियाराम

इशारों पर नाचे संसार, बोलो जय सियाराम


बस कागज़ पर दिखता है जो, वो विकास है कैसा
बिजली, सड़क और पानी का, था जितना भी पैसा

मंत्री, अफ़सर गये डकार, बोलो जय सियाराम

कि कितनी अच्छी है सरकार, बोलो जय सियाराम


जीत गये तो भूल गये वो, सभी चुनावी वादे
बदल गये गिरगिट-सा देखो, जो थे सीधे-सादे

हुआ जनता का बंटाधार, बोलो जय सियाराम
बड़े लोगों का बेड़ा पार, बोलो जय सियाराम


कहां और किस ओर गया है, आज ये भारतवर्ष
चार्वाक का दर्शन बन गया, एकमात्र आदर्श

घी पीते हैं लेकर उधार, बोलो जय सियाराम

वो यू पी हो या हो बिहार, बोलो जय सियाराम

8 comments:

राज भाटिय़ा said...

मन की कोई पूछ नहीं है, तन का ऊंचा आसन
जितने कम जो कपड़े पहने, उतना सुंदर फ़ैशन
रूप की महिमा अपरंपार, बोलो जय सियाराम
इशारों पर नाचे संसार, बोलो जय सियाराम
बहुत सुंदर जी आप के सारे दोहे .
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बात आप तक पहूंचे तो टिप्पणियों से सूचित करें...हा हा!! एकदम मंच वाला माहौल खींच दिया शुरु में ही, रवि भाई.


बहुत खूब::

बोलो जय सिया राम...बड़े दूर की मार है.

M VERMA said...

बहुते अच्छा लिखे हो भाई, बोलो जय सिया राम

ताऊ रामपुरिया said...

बस कागज़ पर दिखता है जो, वो विकास है कैसा
बिजली, सड़क और पानी का, था जितना भी पैसा
मंत्री, अफ़सर गये डकार, बोलो जय सियाराम
कि कितनी अच्छी है सरकार, बोलो जय सियाराम


बहुत जबरदस्त शाट लगाया है भाई. आनंद आगया.

रामराम.

दिगम्बर नासवा said...

sundar kavitaa का sansaar, bolo jay siyaraam ...........
बहुत ही achee लगी आपकी कविता ........

शरद कोकास said...

भाई यह जय सियाराम की टेक अच्छी लगी । इसमे आप बहुत महत्वपूर्ण बाते भी कह सकते है । बधाई

Pawan Kumar said...

डोली लूट गये खुद कहार, बोलो जय सियाराम
भारतमाता भई लाचार, बोलो जय सियाराम

विद्यालय से कालेजों तक, करता कौन पढ़ाई
डिग्री की चिंता क्या करनी, ये कलियुग है भाई
सब है बिकता खुले बाजार, बोलो जय सियाराम
ले लो रूपये के दो-चार, बोलो जय सियाराम

बहुत खूब भाई...........बहुत सीधे सीधे कविता आपने दिल तक पहुंचा दी.

गौतम राजऋषि said...

हा हा..रवि भाई ये नया रूप खूब भाया!