कुछ बिक गये, कुछ एक जमाने से डर गये
जितने भी थे गवाह वो सारे मुकर गये
हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये
कुर्सी के दांव-पेंच का आलम ये देखिये
जिस ओर की हवा थी, महाशय उधर गये
सच उनके घर गुनाह में शामिल है इसलिये
जब भी गये हैं लेके हथेली पे सर गये
मेरी तो कोई बात भी उनसे छुपी नहीं
हैरत से देखते हैं जो देने खबर गये
दुनिया की हर बुराई थी जिनमें भरी हुई
सत्ता के शुद्ध-जल से वो पापी भी तर गये
मेरे अजीज मुझसे सरेराह जो मिले
मुंह फ़ेरकर जनाब मजे से गुज़र गये
जितने भी थे गवाह वो सारे मुकर गये
हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये
कुर्सी के दांव-पेंच का आलम ये देखिये
जिस ओर की हवा थी, महाशय उधर गये
सच उनके घर गुनाह में शामिल है इसलिये
जब भी गये हैं लेके हथेली पे सर गये
मेरी तो कोई बात भी उनसे छुपी नहीं
हैरत से देखते हैं जो देने खबर गये
दुनिया की हर बुराई थी जिनमें भरी हुई
सत्ता के शुद्ध-जल से वो पापी भी तर गये
मेरे अजीज मुझसे सरेराह जो मिले
मुंह फ़ेरकर जनाब मजे से गुज़र गये
16 comments:
हमें तो यही पंक्तियाँ भा गयीं -
हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये
हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये
कुर्सी के दांव-पेंच का आलम ये देखिये
जिस ओर की हवा थी, महाशय उधर गये
श्रेष्ठतम, बहुत सुन्दर !!
दुनिया की हर बुराई थी जिनमें भरी हुई
सत्ता के शुद्ध-जल से वो पापी भी तर गये
सटीक बात और नायाब शेर...वाह रवि जी वाह...पूरी ग़ज़ल एक नए तेवर के साथ अलग नज़र आती है...गुरु देव प्राण शर्मा जी वो पारस हैं जिनका स्पर्श ग़ज़ल को स्वर्णिम आभा प्रदान कर देता है...बधाई...
नीरज
हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये
पचासवीं पोस्ट की हार्दिक बधाई. रचना बहुत ही सुंदरतम है. शुभकामनाएं.
रामराम.
दुनिया की हर बुराई थी जिनमें भरी हुई
सत्ता के शुद्ध-जल से वो पापी भी तर गये
रवि जी ......... पचास्वी पोस्ट पर बधाई ..... धमाकेदार ग़ज़ल है आपकी ..... अलग अलग अंदाज़ के शेर हैं सब ..... मज़ा आ गया .....
SHRI PANKAJ SUBEER KE SHISHYA
SHRI RAVI KANT ANYON KEE TARAH
RAVI KEE KANTI FAILAAYENGE.UNKEE
GAZAL BAHUT ACHCHHEE HAI.UNHEN
HAARDIK BADHAAEE.
कुर्सी के दांव-पेंच का आलम ये देखिये
जिस ओर की हवा थी, महाशय उधर गये
--
बहुत सुन्दर
कुछ बिक गये, कुछ एक जमाने से डर गये
जितने भी थे गवाह वो सारे मुकर गये
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
पचासवीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई ..और आपकी इस सुंदर रचना समेत आगे पीछे की सभी रचनाओं को पढने के लिए आज से आपको फ़ौलो करना शुरू कर दिया है
रवि भाई
ब्लोग कि पचासवी पोस्ट कि हार्दिक बधाई
गजल हमेशा कि तरह शानदार है कुछ शेर खास पसन्द आये
शुक्रिया :)
वीनस केशरी
मुझे ऐसा लगा कि कल बिजली जाने से पहले जिन ब्लागों पर मैं कमेंट कर चुका था उनमें ये भी था किन्तु आज जब पुन: आया तो पता चला कि नहीं किया था । पचासवीं पोस्ट की बधाई । और प्राण साहब के जादुई स्पर्श से पचासवीं पोस्ट संवरने पर और बधाई । गज़ल़ के सारे शेर बोलते हुए हैं । क्यों न हों प्राण साहब जेसे जादूगर के परस का असर होगा ही ।
आजकल के राजनीतिक माहौल का आइना लगी ये ग़ज़ल।
अहा! क्या बात है रवि भाई...मुश्किल बहर पे एक बहुत ही सधी हुई ग़ज़ल।
मतला ही इतना शानदार बन पड़ा है कि क्या कहूँ। और फिर तीसरे शेर का बिधता हुआ कताक्ष...बहुत खूब!
चौथा शेर तनिक देर को उलझाये रहा, लेकिन जैसे ही मंतव्य स्पष्ट हुआ, शायर के लिये स्वयमेव वाह-वाह निकल पड़ा।
एक बेहतरीन ग़ज़ल और पचासवीं पोस्ट के लिये बधाई!
अर्धशतकीय पारी की बधाई ......ऐसे ही लिखते रहिये शुभकामनायें
PADH TO BAHUT PAHALE CHUKAA THA AAPKI IS KHUBSURAT AUR MUSHKIL BAH'R PE BITHAAYEE GAZAL KO ,.. BAHUT BAARI CHARCHAA BHI KAR CHUKAA HUN KUCHH EK KHAS LOGON SE ... MATALE KE BAARE ME KYA KAHUN... LOOTATAA HUA NAZAR AA RAHA HUN... HAR SHE'R APNE AAP ME NAY ANDAAZ KO LIYE HUYE HAI... AAPKI IS PCHASAVEE POST KE LIYE DIL SE DHERO BADHAAYEE.. MAGAR AAPKI LEKHANI KI NIRANTARATA KA KAYAL HUN... BANAYAE RAKHEN...
AAPKA
ARSH
बहुत ख़ूब!
आपके ख़ूबसूरत ख़यालात, प्राण जी के सुझाव और सुबीर जी का आशीर्वाद - ग़ज़ल में कमी का तो सवाल ही नहीं. मूलत: तो रवि जी को आपको ही श्रेय है. यह तो सही है की ५०वी पोस्ट है लेकिन इसमें जो परिपक्वता है, शायद सालों दर सालों भी नहीं आती.
बधाई स्वीकारें.
महावीर शर्मा
Post a Comment