Friday, March 19, 2010

पागल मन को संकल्पों से करता कितनी बार नियंत्रित....

इधर कुछ व्यस्त हूं, तब तक एक पुराना गीत पढ़िये और अपनी राय बताइये-

पागल मन को संकल्पों से करता कितनी बार नियंत्रित
जबकि तुम्हारी एक झलक ही मुझको फिर आतुर कर जाती

बैठ झील के कभी किनारे
छेड़
दिया जो वीणा का स्वर
विश्वामित्र
तपस्या भूले
भूल गये सब योग मछेंदर

चितवन के शर से बिंध-बिंध कर संन्यासी गृहस्थ हुए जब
साधारण फिर मनुज मात्र की कोई इच्छा क्या कर पाती

लौटा पनघट से निराश हो
जब
हर कोशिश करनेवाला
एक
बूंद से जाने कैसे
तुमने पूरा घट भर डाला

मैं एकाकी मरणशील था मृदुल-स्पर्श से पहले-पहले
नेह तुम्हारा साथ न देता तो बुझ जाती जीवन-बाती

Thursday, March 11, 2010

तुझे मुहब्बत बुला रहा हूं....

मित्रों, नमस्कार! बहुत दिनों बाद कोई पोस्ट लिखने बैठा हूं। लीजिये आज पढ़िये एक गीत और बतायें कैसा लगा ? आप चाहें तो मेरी बेसुरी आवाज में भी सुन सकते हैं-



उदास राहों में गा रहा हूं
तुझे मुहब्बत बुला रहा हूं

सुनो अंधेरे के हमनवाओं

मैं एक दीपक जला रहा हूं


वो तोड़ने को कमाल जाने
नहीं दिलों का मलाल जाने

उसे खबर क्या कि दर्द क्या है

जो चोट खाये तो हाल जाने


वो रस्मे नफ़रत निभा रहा है
मैं रस्मे उल्फ़त निभा रहा हूं


भला करूं मैं ये काम कैसे
कि नीम को कह दूं आम कैसे

लगा रहें हैं जो आग घर में

करूं उन्हे मैं सलाम कैसे


वो सच से नज़रें बचा रहे हैं
मैं उनको दरपन दिखा रहा हूं


वो रोयें मेरी भी आंखें नम हों
हमारे गम भी अब उनके गम हों

जो हाथ इक दूसरे का थामें

तो दूरियां भी दिलों की कम हों


कदम बढ़ाएंगे वो भी आगे
कदम अगर मैं बढ़ा रहा हूं

Monday, March 1, 2010

होली में तू चूक न मौका दो घूंट भंग चढ़ाता जा

सभी मित्रों को होली की शुभकामनायें। ब्लाग-जगत में भी पिछले कुछ दिनों से होली की धूम है। गुरूदेव ने तो अपने ब्लाग पर क्या ही जबरदस्त आयोजन कर रखा है, आप भी देखें। वैसे तो गुरूजी का आदेश था कि अपने ब्लाग पर होली मुशायरे वाली हज़ल लगाकर होली मनाई जाये मगर वो क्या कहते हैं न कि कवि को रिपीटिशन से बचना चाहिये इसलिये उनसे क्षमा मांगते हुये एक ताजी रचना आपके सामने रखता हूं। दिमाग का प्रयोग होली के आनंद में बाधक है अतः, आप उसे दूर ही रखें

हुआ यूं कि कल मैं भोले बाबा के मंदिर गया और ज्योंहि "कर्पूरगौरं करुणावतारं...." पढ़ना शुरू किया कि भगवान शिव प्रकट हो गये। उन्होंने कहा-वरं ब्रूहि! वर मांगो वत्स! मैंने कहा आपके दर्शन हो गये और क्या चाहिये, प्रभो! उन्होंने कहा-नहीं, मेरे यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता। तुम कुछ नहीं मांगते तो मैं खुद ही तुम्हे गुरूमंत्र देता हूं। इस पर अमल करोगे तो सफलता सुनिश्चित है-



(चित्र-गूगल से साभार)

भक्त यहां तक आया है जब तो प्रसाद भी पाता जा
होली में तू चूक न मौका दो घूंट भंग चढ़ाता जा


पीकर इसको गर्दभ-स्वर में फिल्मी गीत सुनाना पट्ठे
गफ़लत में सोती जनता को नानी याद दिलाना पट्ठे
लूट-पाट, चोरी, मक्कारी इन सबमें पारंगत हो
मिले नरक का ठेका तुझको ऐसी तेरी संगत हो

कलियुग के इज्जत की पगड़ी अब है तेरे हाथों में
अपने कुत्सित कर्मों से तू इसकी लाज बचाता जा


घर में जूते लाख पड़ें पर वीर नहीं घबराया कर
कलह करें पत्नी श्री जब तो धीरज रख, समझाया कर
सती उमा से सीखें कुछ वो उनको ऐसी शीक्षा दे
भंग घोंटकर तुझे पिलायें उनको ऐसी दीक्षा दे

पूर्ण-योग से लगा रहे तो शीघ्र सफल हो जायेगा
यही तंत्र है, यही मंत्र है, इसकी धुनी रमाता जा