Tuesday, July 6, 2010

प्यार के धागे से दिल के जख्म सीकर देखना

नमस्कार मित्रों! कई दिनों बाद ब्लोग पर हाज़िर हुआ हूं। पेश है एक गज़ल, अपनी राय से अवगत करायें-

प्यार के धागे से दिल के जख्म सीकर देखना
जी सको तो जिंदगी को यूं भी जीकर देखना


लेखनी तेरी रहेगी तू रहे या ना रहे
खुद को मीरा, सूर, तुलसी, जायसी कर देखना


जब सताए खूब तपती दोपहर जो जेठ की
घोलकर सत्तू चने का आप पीकर देखना


लौट जायेंगी बलायें चूमकर दर को तिरे
हौसलों की मन में चट्टानें खड़ी कर देखना


रोशनी घर में तुम्‍हारे खुद ब खुद हो जाएगी
तुम घरों में दूसरों के रोशनी कर देखना


रास्‍ते में फिर सताएंगी नहीं तनहाइयां
दर्दे-दिल से तुम सफ़र में दोसती कर देखना

(गुरूदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से कृत)