मर-मिटने का गर जंग में जज्बात नहीं है
कदमों में तिरे जीत की सौगात नहीं है
रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब
हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है
ऐ काश! हकीकत में भी होती वो जमीं पर
कागज़ पे सड़क होना करामात नहीं है
हिन्दू न मुसलमान नहीं सिक्ख इसाई
आदम के सिवा और मिरी जात नहीं है
उतरेगा किसी रोज तो दौलत का नशा भी
होगी न सहर ऐसी कोई रात नहीं है
आराम से भर पेट जिसे चल दिए खाकर
जीवन कोई थाली में रखा भात नहीं है
दो-चार फ़ुहारों से नहीं बात बनेगी
ना प्यास बुझाए जो वो बरसात नहीं है
कशमीर से गुजरात तलक हाल वही है
किस शहर में आतंक का उत्पात नहीं है
कदमों में तिरे जीत की सौगात नहीं है
रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब
हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है
ऐ काश! हकीकत में भी होती वो जमीं पर
कागज़ पे सड़क होना करामात नहीं है
हिन्दू न मुसलमान नहीं सिक्ख इसाई
आदम के सिवा और मिरी जात नहीं है
उतरेगा किसी रोज तो दौलत का नशा भी
होगी न सहर ऐसी कोई रात नहीं है
आराम से भर पेट जिसे चल दिए खाकर
जीवन कोई थाली में रखा भात नहीं है
दो-चार फ़ुहारों से नहीं बात बनेगी
ना प्यास बुझाए जो वो बरसात नहीं है
कशमीर से गुजरात तलक हाल वही है
किस शहर में आतंक का उत्पात नहीं है
18 comments:
बेहतरीन , लाजवाब और बेहद उम्दा गजल ।
जबरदस्त गज़ल, रवि भाई...आनन्द आ गया!
GURU BHAEE AAPNE TO HAD HI KAR DI YAAR ,.. ABHI PAHALEE RACHANAA SE UBAR BHI NAHI PAYA THA KE YE KAMAAL KI GAZAL AAP NE THEL DI... BHAIYAA JINE DO AMMAA YAAR HAME BHI ,... PICHALI GEET KI KHUMAARI ME ABHI TAK DUB AUR UTAR RAHAA HUN... MAN ME GUNGUNAANE LAGTA HAU RAH RAH KAR... SAARE HI SHE'R APNE AAP ME GAZAL JAISE HAIN... KAMAAL KARTE HO AAP BHI ,... WESE AAP HAR BAAR HI AISE LAZIZ RACHANAWO SE PARICHAY KARWAATE HO KE STABHDH RAH JATA HUN... BAHUT BAHUT BADHAAYEE KUBUL KAREN....
AB WAHI GEET FIR SE PADHANE JAA RAHAA HUN...
ARSH
"रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब
हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है"
वाह ! बेहतरीन । सुन्दर गज़लें लिखते हैं आप ।
हर शेर उम्दा है ,बेहतरीन गज़ल
रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब
हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है ।
इस गजल का हर शेर एक से बढ़कर एक है, किसी एक की तारीफ दूसरे के साथ अन्याय लगेगा, फिर भी इन पंक्तियों का जवाब नहीं, बधाई के साथ शुभकामनायें ।
हिन्दू न मुसलमान नहीं सिक्ख इसाई
आदम के सिवा और मिरी जात नहीं है
रवि भाई आप के किस किस शॆर की तारीफ़ करे सब एक से बढ कर एक बहुत सुंदर जी.
धन्यवाद
jaldi men comment kar rahi hun magar kah rahi hun ki kai sher achchhe bane hai... Matla bhi behatareen aur shirshak vala sher bhi
badhai
आज के हालात पर पैनी नजर रखते हैं आप। आपकी गजल इस बात का प्रमाण है।
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क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।
"कागज़ पे सड़क होना करामात नहीं है"
लाजवाब मिस्रा..लगभग सारे शेर खूब बन पड़े हैं रवि। मेरी हार्दिक बधाई मुश्किल बहर पे इतने सहज मिस्रे बाँधने के लिये...इसी बहर पिछले कई दिनों से मैं भी एक ग़ज़ल कहने की कोशिश कर रहा हूँ, समझ सकता हूं।
"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ" की तर्ज पे गुनगुना रहा हूं तुम्हारी इस ग़ज़ल को।
रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब
हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है
ऐ काश! हकीकत में भी होती वो जमीं पर
कागज़ पे सड़क होना करामात नहीं है
यूँ तो हर शेर ही लाजवाब है ....!!
ऐ काश! हकीकत में भी होती वो जमीं पर
कागज़ पे सड़क होना करामात नहीं है
आराम से भर पेट जिसे चल दिए खाकर
जीवन कोई थाली में रखा भात नहीं है
जिस ग़ज़ल में ऐसे कामयाब शेर हों उसके लिए दाद क्या दें उठ कर तालियाँ बजा रहे हैं...बहुत अच्छा लिख रहे हो रवि...पहले एक अद्भुत गीत और अब ये खूबसूरत ग़ज़ल...सुभान अल्लाह...जोरे कलम और जियादा...
नीरज
Wah...वाहवा....
आराम से भर पेट जिसे चल दिए खाकर
जीवन कोई थाली में रखा भात नहीं है
सबसे अच्छा शेर ।
bahut achha likha hai...
रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब
हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है
ऐ काश! हकीकत में भी होती वो जमीं पर
कागज़ पे सड़क होना करामात नहीं है
ye dono sher dil ko choo gaye.
Matle mein jazbe ki jagah jazbaat (jo aapne saugaat ki wazah se liya hai) shabd mujhe jam nahin raha.
सारे शेर बेमिसाल है...बहुत सुन्दर गजल है.!
नमस्कार रवि जी,
बहुत खूबसूरत शेर कहें है आपने,
"रोते को हँसा देना...........", ".........कागज़ पे सड़क" तो लाजवाब बन पड़े हैं.
एक बेहतरीन ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए शुक्रिया. अगली पेशकश का इंतज़ार रहेगा.
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