Monday, November 30, 2009

वो नन्ही कली एक आई है जबसे......

मित्रों नमस्कार। पिछले २१ नवंबर, शनिवार की रात्रि में कुदरत ने हमें ऐसी खुशी से नवाजा कि घर-आंगन सदा-सदा के लिये हरा-भरा हो गया। जैसा कि आपको गुरू जी की पोस्ट से पता चल ही गया होगा हमारे घर स्वयं आदिशक्ति पधारी हैं। जल्द ही फोटो लगाता हूं, तब तक इस नन्ही परी के स्वागत में एक कविता, आपकी दुआओं और आशीर्वाद का इंतज़ार रहेगा-


वो नन्ही कली एक आई है जबसे
महकने लगा है चमन धीरे-धीरे
भंवर गुनगुनाते, हवा नाचती है
हुये सब खुशी में मगन धीरे-धीरे

हर इक बात उसकी तो जादू भरी है
उतर आई धरती पे कोई परी है

जमीं उसकी आहट पे खुशियां बिछाती

कदम चूमता है गगन धीरे-धीरे


वो खुद है रुबाई, वो खुद ही गज़ल है
सरोवर में खिलता हुआ इक कंवल है
उसे चांदनी रोज लोरी सुनाती
है झूला झुलाती पवन धीरे धीरे

सिखायेगी सबको नये गीत गाना
चलेगा उसीके ये पीछे जमाना

वो इक दिन सितारों से ऊपर उठेगी

ये मन में लगी है लगन धीरे-धीरे

Friday, November 20, 2009

रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब, हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है

मित्रों नमस्कार! आज आपको एक गज़ल पढ़वाता हूं। गुरूदेव श्री पंकज सुबीर जी ने इसे संवारकर कहने लायक बनाया है। पढ़िये और कैसी लगी, बताइये-

मर-मिटने का गर जंग में जज्बात नहीं है
कदमों
में तिरे जीत की सौगात नहीं है

रोते को हंसा दो तो कोई बात है साहिब
हंसते को रुला देना बड़ी बात नहीं है


काश! हकीकत में भी होती वो जमीं पर
कागज़ पे सड़क होना करामात नहीं है


हिन्दू न मुसलमान नहीं सिक्ख इसाई
आदम के सिवा और मिरी जात नहीं है


उतरेगा किसी रोज तो दौलत का नशा भी
होगी न सहर ऐसी कोई रात नहीं है


आराम से भर पेट जिसे चल दिए खाकर
जीवन कोई थाली में रखा भात नहीं है


दो-चार फ़ुहारों से नहीं बात बनेगी
ना प्‍यास बुझाए जो वो बरसात नहीं है


कशमीर से गुजरात तलक हाल वही है
किस शहर में आतंक का उत्पात नहीं है


Tuesday, November 17, 2009

गीत न लिखता तो क्या करता

मित्रों, फ़िर से हाज़िर हूं आपकी खिदमत में। पढ़िये इस गीत को और अपनी राय से अवगत कराईये-

एक तुम्हारा, मधुर हास है, दूजे ये मधुमास पुनीते!

तीजे ठहरी, रात चांदनी, गीत न लिखता, तो क्या करता


झरें अधर से, बोल प्रेम के
जब मदमाती, पुरवाई में

ऐसा लगता, कूक रही हो
जैसे कोयल, अमराई में

सजा गया है, चांद रूप को
और सुना है स्‍वयं रात ने,

पहनाया झिलमिल तारों का
कंगन फिर आज कलाई में


मुझको फ़िर कर गया पराजित, प्रिये! तुम्हारा हृदय-समर्पण
सुर-दुर्लभ इस प्रणय-हार को, जीत न लिखता तो क्या करता


शुभे! हंसिनी, बन तुम आई
विश्व सकल ये, मानसरोवर

बना
सीप से, मोती पहले
चुन लो मुझको, फ़िर तुम आकर

विदित मुझे ये, कठिन बहुत है
कुछ भी कहना, लेकिन फ़िर भी
,
सोच रहा मैं, अवश-अकिंचन
उपमाएं क्या वारूं तुम पर


खोज थका मैं, मिला न मुझको, अपर शब्द कोई भी सुंदर
तुम्हे सुहावन, प्रिय मनभावन, मीत न लिखता, तो क्या करता

Monday, November 9, 2009

जितने भी थे गवाह वो सारे मुकर गये....

मित्रों, आज ये मेरी पचासवीं पोस्ट हाजिर है। कच्छप-गति से चलते-चलते आपके दुआओं के सहारे यहां तक आ पहुंचा हूं। इसी कड़ी में आज पढ़िये ये गज़ल जो आदरणीय प्राण शर्मा जी के सुझावों और आशीर्वाद के बाद कहने लायक बन पाई है-

कुछ बिक गये, कुछ एक जमाने से डर गये
जितने भी थे गवाह वो सारे मुकर गये


हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये


कुर्सी के दांव-पेंच का आलम ये देखिये
जिस ओर की हवा थी, महाशय उधर गये


सच उनके घर गुनाह में शामिल है इसलिये

जब भी गये हैं लेके हथेली पे सर गये


मेरी तो कोई बात भी उनसे छुपी नहीं
हैरत से देखते हैं जो देने खबर गये


दुनिया की हर बुराई थी जिनमें भरी हुई
सत्ता के शुद्ध-जल से वो पापी भी तर गये


मेरे अजीज मुझसे सरेराह जो मिले
मुंह फ़ेरकर जनाब मजे से गुज़र गये

Tuesday, November 3, 2009

बोलो जय सियाराम....

मित्रों, आज प्रस्तुत करता हूं-सीधे-सादे शब्दों में एक रचना। बात आप तक पहूंचे तो टिप्पणियों से सूचित करें-

डोली लूट गये खुद कहार, बोलो जय सियाराम
भारतमाता भई लाचार, बोलो जय सियाराम


विद्यालय से कालेजों तक, करता कौन पढ़ाई
डिग्री की चिंता क्या करनी, ये कलियुग है भाई

सब है बिकता खुले बाजार, बोलो जय सियाराम

ले लो रूपये के दो-चार, बोलो जय सियाराम


मन की कोई पूछ नहीं है, तन का ऊंचा आसन
जितने कम जो कपड़े पहने, उतना सुंदर फ़ैशन

रूप की महिमा अपरंपार, बोलो जय सियाराम

इशारों पर नाचे संसार, बोलो जय सियाराम


बस कागज़ पर दिखता है जो, वो विकास है कैसा
बिजली, सड़क और पानी का, था जितना भी पैसा

मंत्री, अफ़सर गये डकार, बोलो जय सियाराम

कि कितनी अच्छी है सरकार, बोलो जय सियाराम


जीत गये तो भूल गये वो, सभी चुनावी वादे
बदल गये गिरगिट-सा देखो, जो थे सीधे-सादे

हुआ जनता का बंटाधार, बोलो जय सियाराम
बड़े लोगों का बेड़ा पार, बोलो जय सियाराम


कहां और किस ओर गया है, आज ये भारतवर्ष
चार्वाक का दर्शन बन गया, एकमात्र आदर्श

घी पीते हैं लेकर उधार, बोलो जय सियाराम

वो यू पी हो या हो बिहार, बोलो जय सियाराम