Tuesday, November 17, 2009

गीत न लिखता तो क्या करता

मित्रों, फ़िर से हाज़िर हूं आपकी खिदमत में। पढ़िये इस गीत को और अपनी राय से अवगत कराईये-

एक तुम्हारा, मधुर हास है, दूजे ये मधुमास पुनीते!

तीजे ठहरी, रात चांदनी, गीत न लिखता, तो क्या करता


झरें अधर से, बोल प्रेम के
जब मदमाती, पुरवाई में

ऐसा लगता, कूक रही हो
जैसे कोयल, अमराई में

सजा गया है, चांद रूप को
और सुना है स्‍वयं रात ने,

पहनाया झिलमिल तारों का
कंगन फिर आज कलाई में


मुझको फ़िर कर गया पराजित, प्रिये! तुम्हारा हृदय-समर्पण
सुर-दुर्लभ इस प्रणय-हार को, जीत न लिखता तो क्या करता


शुभे! हंसिनी, बन तुम आई
विश्व सकल ये, मानसरोवर

बना
सीप से, मोती पहले
चुन लो मुझको, फ़िर तुम आकर

विदित मुझे ये, कठिन बहुत है
कुछ भी कहना, लेकिन फ़िर भी
,
सोच रहा मैं, अवश-अकिंचन
उपमाएं क्या वारूं तुम पर


खोज थका मैं, मिला न मुझको, अपर शब्द कोई भी सुंदर
तुम्हे सुहावन, प्रिय मनभावन, मीत न लिखता, तो क्या करता

13 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

खोज थका मैं, मिला न मुझको, अपर शब्द कोई भी सुंदर
तुम्हे सुहावन, प्रिय मनभावन, मीत न लिखता, तो क्या करता

बहुत खूब, मनमोहक पंक्तियाँ !

दिगम्बर नासवा said...

झरें अधर से, बोल प्रेम के
जब मदमाती, पुरवाई में
ऐसा लगता, कूक रही हो
जैसे कोयल, अमराई में ...

प्रेम का स्त्रोत फुट रहा है आपके ब्लॉग से .......... हम भी अंजुरी भर रहे हैं ......
बहुत सुंदर गीत है ........

पंकज सुबीर said...

रवि अगर केवल कविताओं की बात करूं तो ये मेरे द्वारा ब्‍लाग पर पढ़ी गई कुछ ( हां केवल कुछ, शायद चार या पांच ) श्रेष्‍ठ कविताओं में है । इससे ज्‍यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है ।

"अर्श" said...

amaa jaan lene pe tule ho miyaan aap to ... natmastak hun bhaaee jaan ... kya likh dete ho yaar aap guru ji ne sab kuchh kah diyaa hai aage kuchh kahne ki jarurat nahi hai....



aapka
arsh

नीरज गोस्वामी said...

रवि जी आपने संकट में डाल दिया...प्रशंशा के लिए शब्द नहीं मिल रहे और जो तालियाँ मैं बजा रहा हूँ उसे आप ना सुन पा रहे हैं और ना ही देख पा रहे हैं...शब्द और भाव का अभूतपूर्व मिलन है आपकी इस रचना में...मुझे उम्मीद है मेरे मन के उदगार आप तक पहुँच गए होंगे...खुश रहें और खूब तरक्की करें....

नीरज

daanish said...

bahut hi khoobsurat shaili mei
likha gayaa manoram geet...
aapki lekhan kushaltaa ko
abhivaadan kehta hooN .

Himanshu Pandey said...

"खोज थका मैं, मिला न मुझको, अपर शब्द कोई भी सुंदर
तुम्हे सुहावन, प्रिय मनभावन, मीत न लिखता, तो क्या करता"

पंकज जी की बात अतिशयोक्ति नहीं । अदभुत कविता । मुग्ध, मौन रसास्वादन ही कर सकते हैं ।

राज भाटिय़ा said...

मुझको फ़िर कर गया पराजित, प्रिये! तुम्हारा हृदय-समर्पण
सुर-दुर्लभ इस प्रणय-हार को, जीत न लिखता तो क्या करता
रवि जी आज तो हमारे तारीफ़ के शव्द भी कम पड रहे है, बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद

कंचन सिंह चौहान said...

राकेश खण्डेलवाल जी का लिखा मेरा बहुत प्रिय गीत

एक तुम्हारा प्रश्न अधूरा, दूजे उत्तर बहुत जटिल थे,
तीजे वाणी रुँधी हुई थी, इसीलिये मैं मौन रह गया....!


क्षमा करे रवि जी मगर मैं वहीं अटक के रह जा रही हूँ....

सुशील छौक्कर said...

खोज थका मैं, मिला न मुझको, अपर शब्द कोई भी सुंदर
तुम्हे सुहावन, प्रिय मनभावन, मीत न लिखता, तो क्या करता।

बेह्तरीन गीत।

PRAN SHARMA said...

komal kaant shabd , sahaj bhaav aur mun ko chhoo lene waale
abhvyakti ,ye teeno visheshtaayen
aapke geet mein hain.badhaaee.

शोभना चौरे said...

sundar bhav liye komal kavita

गौतम राजऋषि said...

सुंदर गीत रवि...

एकदम खासम-खास रवि-शैली में...बहुत ही बेहतरीन!