Thursday, July 23, 2009

ख्वाब हैं मेरे कि जी उठते हैं ईसा की तरह

इसबार का सूर्य-ग्रहण जो कई मायने में अनूठा था, आया और गया। बारिश कई जगह बाधक बन गया इस अद्भुत खगोलीय घटना का अवलोकन करने में। अब संयोग देखिये कि मेरा कंप्यूटर भी ग्रहण का शिकार हो गया और अभी तक है। शायद एक -दो दिन और लगे उबरने में। अभी-अभी एक गज़ल को गुरूदेव पंकज सुबीर जी ने संवार कर भेजा है, सो मैने सोचा जैसे भी हो इसे आप तक पहुंचाना चाहिये। जब तक फ़िर से सक्रिय होता हुं तब तक इसे आपकी नज़र करता हुं, देखें और आशीर्वाद दें।

दुख सजाये हैं गले में जबसे माला की तरह
पीछे-पीछे सुख चले आये हैं छाया की तरह

रोज सूली पर इन्हे दुनिया चढ़ाती है मगर
ख्वाब हैं मेरे कि जी उठते हैं ईसा की तरह

सामने होता है जब वो खुद को देता हूं मिटा
मैं समंदर से सदा मिलता हूं दरिया की तरह

वो तुम्‍हें जीवन के असली मायने सिखलायेंगें
तुम बुजुर्गों को समझना पाठशाला की तरह

आ भी जाओ राम बनकर राह पर आंखें लगी
जिंदगी पत्थर हुई शापित अहिल्या की तरह

10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

सामने होता है जब वो खुद को देता हूं मिटा
मैं समंदर से सदा मिलता हूं दरिया की तरह

आ भी जाओ राम बनकर राह पर आंखें लगी
जिंदगी पत्थर हुई शापित अहिल्या की तरह

अहहाहा....वाह...रवि जी वाह...जिंदाबाद...इसतरह के शेर आपको शायरी की दुनिया में बुलंदियों पर पहुंचाएंगे...बहुत खूब...दाद कबूल करें
नीरज

Unknown said...

bahut khoob ravikantji............
umda baat !

"अर्श" said...

सामने होता है जब वो खुद को देता हूं मिटा
मैं समंदर से सदा मिलता हूं दरिया की तरह

वो तुम्‍हें जीवन के असली मायने सिखलायेंगें
तुम बुजुर्गों को समझना पाठशाला की तरह

YE DO SHE'R WAKAI AAPKEE UMDAA AUR GAHARI SOCH KA HI PRATIFAL HAI ... PAHALE SHE'R ME JIS TARAH AAPNE APNE AAPKO SAMARPIT KIYA HAI WAHI DUSARE ME TARAZARBAAKARI KI YE BAATEN .... GURU BHAEE IN DONO SHERO KI JITANI TAARIF KARI JAAYE KAM HAI ... KADE HOKAR SALAAM AAPKO .... BAHOT BAHOT BADHAAYEE


ARSH

रंजू भाटिया said...

वो तुम्‍हें जीवन के असली मायने सिखलायेंगें
तुम बुजुर्गों को समझना पाठशाला की तरह

बहुत सुन्दर सही कहा आपने ..

पंकज सुबीर said...

ख्वाब हैं मेरे कि जी उठते हैं ईसा की तरह
बहुत अच्‍छी बात कही है । ख्‍वाब कभी नहीं मरते । ख्‍वाब मरने भी नहीं चाहिये । जिस दिन सपने मर जाते हैं उस दिन आदमी भी मर जाता है । सपने ही तो है जो हमारे जिंदा होने का प्रमाण होते हैं ।

M VERMA said...

समुन्दर से दरिया की तरह मिलने की यह अदा अच्छी लगी.
रोज सूली पर इन्हे दुनिया चढ़ाती है मगर
ख्वाब हैं मेरे कि जी उठते हैं ईसा की तरह
वाह

वीनस केसरी said...

रवि भाई
बहुत सुन्दर गजल कही है हर शेर पसंद आया किसी एक शेर को कोट करना मुमकिन नहीं
हमेशा ऐसा ही लिखते रहिये

वीनस केसरी

संजीव गौतम said...

दुख सजाये हैं गले में जबसे माला की तरह
पीछे-पीछे सुख चले आये हैं छाया की तरह

सामने होता है जब वो खुद को देता हूं मिटा
मैं समंदर से सदा मिलता हूं दरिया की तरह

वो तुम्‍हें जीवन के असली मायने सिखलायेंगें
तुम बुजुर्गों को समझना पाठशाला की तरह

ravi bhaee zindaabad zindaabaad. jee khush ho gayaa abhee aapakee ghazal ko padhakar. ye aapakee jitanee maine padhee hain unamen behatareena ghazalon men hai. aatmik badhaaee

दिगम्बर नासवा said...

रोज सूली पर इन्हे दुनिया चढ़ाती है मगर
ख्वाब हैं मेरे कि जी उठते हैं ईसा की तरह

वाह....रवि कांत जी......... एक से बढ़ कर एक लाजवाब शेर हैं............. आपको पढ़ आर मज़ाआ जाता है

Smart Indian said...

सुन्दर!