Thursday, July 2, 2009

मेरा देश है महान

इधर बीच कुछ व्यस्तता है। तब तक के लिये कुछ हल्का-फ़ुल्का पेश है-


नहीं कोकिला के बैन नहीं हिरणी के नैन जो चुराये चित्त-चैन वो तुम्हारी है मुस्कान
कठिन महाकाल से पीड़ाओं के भूचाल से बचाए हर जाल से बस एक भगवान
देखो दुनिया है गोल रखो सबका ही मोल बोलो मीठे-मीठे बोल खूब चलेगी दुकान
जैसे दीया बिन बाती लंपट चोर उत्पाती सारे शिव के बाराती मेरा देश है महान


रात-दिन हर वक्त चूसते मजे से रक्त करके तुम्हे अशक्त छीन उनसे कमान
शीतल बहा दे पौन सहे सब दुख मौन देखें अब देता कौन देश-हित बलिदान
खोया सब लोक-लाज बिना दिशा के समाज कितना विकास आज सोच तो जरा नादान
लीजे चुकाकर दाम धर्म, अर्थ, मोक्ष, काम बिकते सबेरे-शाम मेरा देश है महान

5 comments:

Udan Tashtari said...

मेरा देश है महान-शान से, शानदार!!

Manish Kumar said...

satya vichar

दिगम्बर नासवा said...

खोया सब लोक-लाज बिना दिशा के समाज कितना विकास आज सोच तो जरा नादान

saty कहा है uttam vichaar हैं .........भावों को शब्दों में उतार दिया है आपने..........

नीरज गोस्वामी said...

शब्द विन्यास चमत्कृत कर देने वाला है...वाह..
नीरज

"अर्श" said...

PRIYA BHAEE RAVI AAP JIS TARAH SE SHUDH HINDI KE SHABD KA SANYOJAN KARTE HAI WO SACH ME DEKHNE LAAYAK HOTA HAI... BAHOT HI KHUBSURAT RACHANAA DHERO BADHAAYEE SAHIB...


ARSH