ये रहे गुरूदेव को समर्पित शेर
कौन कहता है कि डरकर खींच लूंगा पांव मैं
ले के कश्ती चल पड़ा हूं कह दो ये तूफान से
लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं
जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से
ले के कश्ती चल पड़ा हूं कह दो ये तूफान से
लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं
जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से
और अंत में, एक गीत से पारायण करता हूं-
मन-मंदिर में, बिठा तुम्हे, प्रिय! किये गीत, सब अर्पण अपने
और मिला फ़िर, ये प्रसाद, तुमने देखा, है मुझे नजर भर
ले-देकर इन आंखों में
बस एक ख्वाब, हरदम पलता था
जैसे भी हो, मिलना हो
ये दीप सदा, निशचल जलता था
इससे सुंदर, जीवन की, छवि भला और, अब क्या हो सकती
मुझे अंक में, लिया और, निज वरद-हस्त, रख दिया भाल पर
सकल सिद्धियां व्यर्थ हुईं
वाणी तेरी, प्रीत-पगी, सुनकर होता, मन शीतल मानो
मधुर चांदनी, पूनम की, हो बरस रही, मुझ पर झर-झर कर
और मिला फ़िर, ये प्रसाद, तुमने देखा, है मुझे नजर भर
ले-देकर इन आंखों में
बस एक ख्वाब, हरदम पलता था
जैसे भी हो, मिलना हो
ये दीप सदा, निशचल जलता था
इससे सुंदर, जीवन की, छवि भला और, अब क्या हो सकती
मुझे अंक में, लिया और, निज वरद-हस्त, रख दिया भाल पर
सकल सिद्धियां व्यर्थ हुईं
कुछ पाने की, मन में चाह नहीं
तुम मिले, मिली, है मंजिल आगे अब कोई राह नहीं
वाणी तेरी, प्रीत-पगी, सुनकर होता, मन शीतल मानो
मधुर चांदनी, पूनम की, हो बरस रही, मुझ पर झर-झर कर
10 comments:
सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं आपने...गुरु कभी कुछ मांगता नहीं...सिवाय समर्पण के.
नीरज
सुन्दर उदगार हैं, भाव हैं, प्यार है आपकी रचना में............ पंकज जी हमारे भी गुरु हैं.......... प्रणाम है हमारा भी
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण
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चाँद, बादल और शाम
रविकांत जी आपकी कविताएं हमेशा ही बहुत अच्छी होती है..! आप के साथ आपकी प्रेरणा को भी प्रणाम..!
लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं
जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से
बहुत सुंदर आप की रचानाय़े
धन्यवाद
achcha badhiya
रवि भाई,
गुरु जी का मिलना तो मेरी जिनगी का वो हसीन तोहफा है जिसके लिए भगवान का जितना शुक्रिया अदा करूं कम है
लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं
जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से
इस शेर को पढ़ कर लगा की आप वास्तव में गुरु जी सीखने की प्रक्रिया में कितने सक्रीय और लगनशील हैं आपके कहे सबसे अच्छे शेरों में से एक शेर है ये
वीनस केसरी
achha
bahut hi achha
waah!
badhaai !
प्रिय गुरु भाई रविकांत जी ,
पहले तो गुरु देव को सादर चरणस्पर्श.. क्या खुबसूरत बात कही है आपने..गुरु देव के समर्पण में आपने जो दो शे'र कहे है उसकी मैं क्या बला तारीफ़ कर सकता हूँ ... मगर हाँ इस शे'र को एक पूरी ग़ज़ल का रूप चाहिए इसकी गुजारिश जरुर करूँगा... और उम्मीद करता हूँ के बहोत जल्द ही ये पूरी ग़ज़ल पढने को मिलेगी .... मैं हमेशा ही कहता हूँ के आपकी कवितायेँ और उसमे इस्तेमाल किये हिंदी के शब्द मुझे हमेशा ही बिसमित कर देते है ... हमेशा की तरह इस बारी की कविता भी कमाल की निकली.. ढेरो बधाई साहिब.. और हाँ गुरु बहन कंचन से मिल आये चुपके चुपके ...अछि बात है बहोत ख़ुशी हुई मुझे भी....
अर्श
मैं निःशब्द हूँ रवि...
सोचता हूँ इसके बाद तो कहने के लिये क्या रहा गुरू के सम्मान में...
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