Tuesday, July 7, 2009

लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं... जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से

गुरूपूर्णिमा के बारे में कुछ भी लिखना सिर्फ़ अपनी अज्ञानता प्रकट करना होगा क्योंकि लिखने बैठे तो फ़िर इतनी बातें हैं जो कभी समाप्त न हो। एक अनगढ़ पत्थर को तराश कर सुंदर मूर्त्ति में बदले की कला गुरूजन में निहित होती है। ऐसे में सिवाय कृतज्ञता के भाव के और क्या किया जा सकता है? वैसे तो मैं प्रत्यक्षतः श्री पंकज सुबीर जी से नहीं मिला हूं पर जबसे उनके संपर्क में आया हूं, तुलसी के इस कथन में मेरा भरोसा बढ़ गया है- जब द्रवै दीन-दयालु राघव, साधु संगति पाइए आज गुरूपूर्णिमा पर मेरे पास उन्हे देने को नहीं है, बस नई गज़ल के दो शेर अर्पित करता हूं, जल्दी ही पूरी गज़ल सुनाउंगा।

ये रहे गुरूदेव को समर्पित शेर

कौन कहता है कि डरकर खींच लूंगा पांव मैं
ले के कश्‍ती चल पड़ा हूं कह दो ये तूफान से

लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं
जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से

और अंत में, एक गीत से पारायण करता हूं-

मन-मंदिर में, बिठा तुम्हे, प्रिय! किये गीत, सब अर्पण अपने
और मिला फ़िर, ये प्रसाद, तुमने देखा, है मुझे नजर भर

ले-देकर इन आंखों में
बस एक ख्वाब, हरदम पलता था
जैसे भी हो, मिलना हो
ये दीप सदा, निशचल जलता था

इससे सुंदर, जीवन की, छवि भला और, अब क्या हो सकती
मुझे अंक में, लिया और, निज वरद-हस्त, रख दिया भाल पर

सकल सिद्धियां व्यर्थ हुईं
कुछ पाने की, मन में चाह नहीं
तुम मिले, मिली, है मंजिल
आगे अब कोई राह नहीं

वाणी तेरी, प्रीत-पगी, सुनकर होता, मन शीतल मानो
मधुर चांदनी, पूनम की, हो बरस रही, मुझ पर झर-झर कर



10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं आपने...गुरु कभी कुछ मांगता नहीं...सिवाय समर्पण के.
नीरज

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर उदगार हैं, भाव हैं, प्यार है आपकी रचना में............ पंकज जी हमारे भी गुरु हैं.......... प्रणाम है हमारा भी

Vinay said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण


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चाँद, बादल और शाम

कंचन सिंह चौहान said...

रविकांत जी आपकी कविताएं हमेशा ही बहुत अच्छी होती है..! आप के साथ आपकी प्रेरणा को भी प्रणाम..!

राज भाटिय़ा said...

लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं
जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से
बहुत सुंदर आप की रचानाय़े
धन्यवाद

Razi Shahab said...

achcha badhiya

वीनस केसरी said...

रवि भाई,
गुरु जी का मिलना तो मेरी जिनगी का वो हसीन तोहफा है जिसके लिए भगवान का जितना शुक्रिया अदा करूं कम है

लीक पर चलना मिरी फ़ितरत में है शामिल नहीं
जंग जारी है मिरी अल्लाह से, भगवान से
इस शेर को पढ़ कर लगा की आप वास्तव में गुरु जी सीखने की प्रक्रिया में कितने सक्रीय और लगनशील हैं आपके कहे सबसे अच्छे शेरों में से एक शेर है ये
वीनस केसरी

Unknown said...

achha
bahut hi achha
waah!
badhaai !

"अर्श" said...

प्रिय गुरु भाई रविकांत जी ,
पहले तो गुरु देव को सादर चरणस्पर्श.. क्या खुबसूरत बात कही है आपने..गुरु देव के समर्पण में आपने जो दो शे'र कहे है उसकी मैं क्या बला तारीफ़ कर सकता हूँ ... मगर हाँ इस शे'र को एक पूरी ग़ज़ल का रूप चाहिए इसकी गुजारिश जरुर करूँगा... और उम्मीद करता हूँ के बहोत जल्द ही ये पूरी ग़ज़ल पढने को मिलेगी .... मैं हमेशा ही कहता हूँ के आपकी कवितायेँ और उसमे इस्तेमाल किये हिंदी के शब्द मुझे हमेशा ही बिसमित कर देते है ... हमेशा की तरह इस बारी की कविता भी कमाल की निकली.. ढेरो बधाई साहिब.. और हाँ गुरु बहन कंचन से मिल आये चुपके चुपके ...अछि बात है बहोत ख़ुशी हुई मुझे भी....


अर्श

गौतम राजऋषि said...

मैं निःशब्द हूँ रवि...

सोचता हूँ इसके बाद तो कहने के लिये क्या रहा गुरू के सम्मान में...