नव-वर्ष की सुभकामनाओं सहित-
प्रेम तब
उस भूमि की प्यास बुझे न कभी बरसे न जहां नभ की बदलीउस फूल का जीवन व्यर्थ हुआ जिस फूल पे बैठे नहीं तितली
दिल का तुम हाल सुनो सजनी तड़पे जल के ज्यों बिना मछली
रितुराज वसंत में आन मिलो विपदा मन की सब जाय टली
प्रेम अब
बाइक पे चलते तनके वह रोड पे कार से होड़ लगायेंहोठ से स्पर्श न पानी करें वह पीकर बीयर प्यास बुझायें
दौड़ में शामिल संग न जो उसको बबुआ पिछड़ा बतलायें
कुंजगली अब भाती नहीं सड़कों पर मोहन रास रचायें
रविकांत पांडेय
3 comments:
बहुत सुंदर तुलना जी धन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को इस नये वर्ष की शुभकामनाऎं
रवि भाई क्या खूब कहा है, सही में प्रेम के ढंग बदल गए हैं मगर रंग तो अब भी वैसा ही है.
नव वर्ष की शुभकामनाएं
जब इन्सान ही बदल गया है तो प्रेम का रंग तो बदलेगा ही। शुभकामनायें।
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