(कहते हैं भगवान कृष्ण के छूने से कुब्जा का कूबड़ ठीक हो गया था। लड़खड़ाती हुई ये गजल गुरूदेव श्री पंकज सुबीर जी के छूने से ठीक होकर कहने लायक हो पाई है।)
कातिल हमको समझाते हैं हथियारों की बात न करिये
आग लगानेवाले कहते अंगारों की बात न करिये
बिन दीपक कैसी दीवाली ईद बिना सेंवइयों के क्या
ठंडा है चूल्हा दो दिन से त्यौहारों की बात न करिये
पहना कर सच के कपड़े ये झूठ परोसा करते हैं बस
हमको सब मालूम है हमसे अखबारों की बात न करिये
सूरज मुट्ठी में रखते हैं जब चाहे नीलाम करें ये
गिरवी है आकाश यहाँ चंदा तारों की बात न करिये
बम फटते हों आगजनी हो या फ़िर दंगो की बातें हों
लंबी ताने सोयें साहब, हुंकारों की बात न करिये
निश्छल प्रेम जहाँ मिलता है उस दर पे सज़दे करता हूँ
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर इन बाजारों की बात न करिये
तेरा मेरा इसका उसका जीना है क्या सिर्फ़ यही बस
दिल से दिल को दूर करे जो दीवारों की बात न करिये