इसीलिये तो नगर-नगर बदनाम हो गये मेरे आंसू
मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था
जिनका दुख लिखने की खातिर
मिली न इतिहासों को स्याही
कानूनों को नाखुश करके
मैंने उनकी भरी गवाही
जले उमर भर लेकिन जिनकी
अर्थी उठी अंधेरे में ही
खुशियों की नौकरी छोड़कर
मैं उनका बन गया सिपाही
पद-लोभी आलोचक कैसे करता दर्द पुरस्कृत मेरा
मैंने जो कुछ गाया उसमें करुणा थी, श्रृंगार नहीं था
इसीलिये तो नगर-नगर.................................
मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था
जिनका दुख लिखने की खातिर
मिली न इतिहासों को स्याही
कानूनों को नाखुश करके
मैंने उनकी भरी गवाही
जले उमर भर लेकिन जिनकी
अर्थी उठी अंधेरे में ही
खुशियों की नौकरी छोड़कर
मैं उनका बन गया सिपाही
पद-लोभी आलोचक कैसे करता दर्द पुरस्कृत मेरा
मैंने जो कुछ गाया उसमें करुणा थी, श्रृंगार नहीं था
इसीलिये तो नगर-नगर.................................
तो जोरदार तालियों से स्वागत कीजिये श्री पंकज सुबीर जी का-
देखते हैं कौन है मशीन होते जा रहे इंसानों की बस्ती में जो ये दर्द मोल लेता है! फ़िलहाल तो मैं खड़े होकर तालियां बजा रहा हूं। और लीजिये अब पेश है मेरी एक गज़ल जिसे गुरूदेव ने न सिर्फ़ संवारा है बल्कि अपनी आवाज भी दी है (इंतज़ार का फल तो मीठा होता ही है ना!)।
खुशी के दीप जलाये थे जिसके आने पर
सजायें दी है मुझे उसने मुस्कुराने पर
ये कैसा शहर है, कैसे हैं कद्रदां यारों
कटे हैं हाथ यहां तो हुनर दिखाने पर
तबीयत उनकी तो सांपों से मिलती-जुलती है
हैं बैठे मार के कुंडली तभी ख़जाने पर
मिली है क़ैद अगर अम्न की जो की बातें
इनाम बांटे गये बस्तियां जलाने पर
हरेक बात पे सच बोलने का फ़ल है ये
है आजकल मिरा घर तीरों के निशाने पर
अदू के हाथ में खंजर भी हो ये मुमकिन है
भरम न पालिये हंसकर गले लगाने पर
बस एक खेल समझते थे वो मुहब्बत को
लगी वो चोट के होश आ गये ठिकाने पर
मैं चुप हूं तो न समझिये कि हाल अच्छा है
जिगर फटेगा जो हम आ गये सुनाने पर
कोई बताये कि हम इस अदा को क्या समझें
वो और रूठते जाते "रवी" मनाने पर
खुशी के दीप जलाये थे जिसके आने पर
सजायें दी है मुझे उसने मुस्कुराने पर
ये कैसा शहर है, कैसे हैं कद्रदां यारों
कटे हैं हाथ यहां तो हुनर दिखाने पर
तबीयत उनकी तो सांपों से मिलती-जुलती है
हैं बैठे मार के कुंडली तभी ख़जाने पर
मिली है क़ैद अगर अम्न की जो की बातें
इनाम बांटे गये बस्तियां जलाने पर
हरेक बात पे सच बोलने का फ़ल है ये
है आजकल मिरा घर तीरों के निशाने पर
अदू के हाथ में खंजर भी हो ये मुमकिन है
भरम न पालिये हंसकर गले लगाने पर
बस एक खेल समझते थे वो मुहब्बत को
लगी वो चोट के होश आ गये ठिकाने पर
मैं चुप हूं तो न समझिये कि हाल अच्छा है
जिगर फटेगा जो हम आ गये सुनाने पर
कोई बताये कि हम इस अदा को क्या समझें
वो और रूठते जाते "रवी" मनाने पर
अब मुझे इजाजत दें और बतायें प्रस्तुति कैसी लगी ?