मित्रों, आज प्रस्तुत करता हूं-सीधे-सादे शब्दों में एक रचना। बात आप तक पहूंचे तो टिप्पणियों से सूचित करें-
डोली लूट गये खुद कहार, बोलो जय सियाराम
भारतमाता भई लाचार, बोलो जय सियाराम
विद्यालय से कालेजों तक, करता कौन पढ़ाई
डिग्री की चिंता क्या करनी, ये कलियुग है भाई
सब है बिकता खुले बाजार, बोलो जय सियाराम
ले लो रूपये के दो-चार, बोलो जय सियाराम
मन की कोई पूछ नहीं है, तन का ऊंचा आसन
जितने कम जो कपड़े पहने, उतना सुंदर फ़ैशन
रूप की महिमा अपरंपार, बोलो जय सियाराम
इशारों पर नाचे संसार, बोलो जय सियाराम
बस कागज़ पर दिखता है जो, वो विकास है कैसा
बिजली, सड़क और पानी का, था जितना भी पैसा
मंत्री, अफ़सर गये डकार, बोलो जय सियाराम
कि कितनी अच्छी है सरकार, बोलो जय सियाराम
जीत गये तो भूल गये वो, सभी चुनावी वादे
बदल गये गिरगिट-सा देखो, जो थे सीधे-सादे
हुआ जनता का बंटाधार, बोलो जय सियाराम
बड़े लोगों का बेड़ा पार, बोलो जय सियाराम
कहां और किस ओर गया है, आज ये भारतवर्ष
चार्वाक का दर्शन बन गया, एकमात्र आदर्श
घी पीते हैं लेकर उधार, बोलो जय सियाराम
वो यू पी हो या हो बिहार, बोलो जय सियाराम