मानसरोवर मध्य हंस नहीं दिखते हैं
हंस की बजाय वहां कौवे मिलने लगे
फूलों वाली राह पर इतने हैं कांटे आज
पांव गर रखिये तो पांव छिलने लगें
सत्य,अहिंसा, करुणा, प्रेम कौन पूछता है
हिंसा घृणा, वैर के हैं फूल खिलने लगे
भारत की शाखों पर जितने थे पत्ते यारों
पश्चिम की आंधी आई सारे हिलने लगे
सुविचार सद्गुण को देशनिकाला घोषित
भावना को कारागृह देने की तैयारी है
भारतीय संस्कृति सर धुन रोती आज
सभ्यता के नाम पर खेल ऐसा जारी है
इसको बुझा दो बंधु बात बढ़ने से पूर्व
शोला बन जलायेगी अभी जो चिंगारी है
वरना समझ लो ये साफ़-साफ़ कहता हूं
आज मेरा घर जला कल तेरी बारी है
घोर है अंधेरा माना कुछ नहीं सूझता है
काम बस इतना है दीपक जलाइये
साधक सुजान हम ज्ञान के अनादि से हैं
जग में सर्वत्र ज्ञान-ध्वज फहराइये
लीजिये संकल्प वसुधैव कुटुंबकं का
ऊंच-नीच भेद भाव मन से मिटाइये
आइये निर्माण करें हम नये भारत का
मेरे साथ-साथ आप कदम बढ़ाइये