तो ये रहा संक्षिप्त परिचय। अब छंद हाजिर करता हूं, बतायें प्रयास कैसा रहा-
प्रीत की पावन पुस्तक में उसका "रवि" केवल नाम लिखा है
लोचन-तीर चला उसने उर बीच मेरे पयगाम लिखा है
पांव पड़े हैं जहां उसके तहं नूतन मंगल धाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(पयगाम = पैगाम)
नाम उसी का सदा घट भीतर हर्षित आठहुं याम लिखा है
दिव्य यूं शब्द कि मैंने उन्हे रिगवेद, यजुर अरु साम लिखा है
देखि छवी उसकी जो अलौकिक तो छवि को अभिराम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(रिगवेद = ऋग्वेद, यजुर = यजुर्वेद, साम = सामवेद)
मूरत मंदिर की कह उसको बार ही बार प्रणाम लिखा है
प्रेम की बेर खिला चुपके उसने मुझको फिर राम लिखा है
मादक गंध उसे मधुमास की प्रीत बरी इक शाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
लोचन-तीर चला उसने उर बीच मेरे पयगाम लिखा है
पांव पड़े हैं जहां उसके तहं नूतन मंगल धाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(पयगाम = पैगाम)
नाम उसी का सदा घट भीतर हर्षित आठहुं याम लिखा है
दिव्य यूं शब्द कि मैंने उन्हे रिगवेद, यजुर अरु साम लिखा है
देखि छवी उसकी जो अलौकिक तो छवि को अभिराम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(रिगवेद = ऋग्वेद, यजुर = यजुर्वेद, साम = सामवेद)
मूरत मंदिर की कह उसको बार ही बार प्रणाम लिखा है
प्रेम की बेर खिला चुपके उसने मुझको फिर राम लिखा है
मादक गंध उसे मधुमास की प्रीत बरी इक शाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है