सभी मित्रों को होली की शुभकामनायें। ब्लाग-जगत में भी पिछले कुछ दिनों से होली की धूम है।
गुरूदेव ने तो अपने ब्लाग पर क्या ही जबरदस्त आयोजन कर रखा है, आप भी देखें। वैसे तो गुरूजी का आदेश था कि अपने ब्लाग पर होली मुशायरे वाली हज़ल लगाकर होली मनाई जाये मगर वो क्या कहते हैं न कि कवि को रिपीटिशन से बचना चाहिये इसलिये उनसे क्षमा मांगते हुये एक ताजी रचना आपके सामने रखता हूं।
दिमाग का प्रयोग होली के आनंद में बाधक है अतः, आप उसे दूर ही रखें।
हुआ यूं कि कल मैं भोले बाबा के मंदिर गया और ज्योंहि "कर्पूरगौरं करुणावतारं...." पढ़ना शुरू किया कि भगवान शिव प्रकट हो गये। उन्होंने कहा-वरं ब्रूहि! वर मांगो वत्स! मैंने कहा आपके दर्शन हो गये और क्या चाहिये, प्रभो! उन्होंने कहा-नहीं, मेरे यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता। तुम कुछ नहीं मांगते तो मैं खुद ही तुम्हे गुरूमंत्र देता हूं। इस पर अमल करोगे तो सफलता सुनिश्चित है-
(चित्र-गूगल से साभार)
भक्त यहां तक आया है जब तो प्रसाद भी पाता जा
होली में तू चूक न मौका दो घूंट भंग चढ़ाता जा
पीकर इसको गर्दभ-स्वर में फिल्मी गीत सुनाना पट्ठे
गफ़लत में सोती जनता को नानी याद दिलाना पट्ठे
लूट-पाट, चोरी, मक्कारी इन सबमें पारंगत हो
मिले नरक का ठेका तुझको ऐसी तेरी संगत हो
कलियुग के इज्जत की पगड़ी अब है तेरे हाथों में
अपने कुत्सित कर्मों से तू इसकी लाज बचाता जा
घर में जूते लाख पड़ें पर वीर नहीं घबराया कर
कलह करें पत्नी श्री जब तो धीरज रख, समझाया कर
सती उमा से सीखें कुछ वो उनको ऐसी शीक्षा दे
भंग घोंटकर तुझे पिलायें उनको ऐसी दीक्षा दे
पूर्ण-योग से लगा रहे तो शीघ्र सफल हो जायेगा
यही तंत्र है, यही मंत्र है, इसकी धुनी रमाता जा