मुश्किलों से राह की हंस कर गले मिलता रहा
मैं कि था बस इक मुसाफ़िर उम्र-भर चलता रहा
सत्य के उपदेश का व्यापार करते जो रहे
झूठ उनके साये में ही फूलता फलता रहा
दुख मिटाने के लिये कोई मसीहा आएगा
आदमी यूं रोज अपने आप को छलता रहा
वक्त को पहचानने में भूल जिसने भी है की
कुछ नहीं वो पा सका, बस हाथ ही मलता रहा
सच यही है, जिंदगी तुम बिन अमावस हो गई
चांद यूं कहने को आंगन में सदा खिलता रहा
जैसे जैसे निष्कपट बच्चे बड़े होते गये
हौले हौले जहर कोई जिस्म में घुलता रहा
कैसे लिखता प्यार की ग़ज़लें मैं उसको देख कर
वो भिखारी रात भर चादर फटी सिलता रहा
सोचता था वो छुएगा अब नई ऊंचाइयां
किन्तु सूरज जाके पश्चिम में यूं ही ढलता रहा
(2122 2122 2122 212)
मैं कि था बस इक मुसाफ़िर उम्र-भर चलता रहा
सत्य के उपदेश का व्यापार करते जो रहे
झूठ उनके साये में ही फूलता फलता रहा
दुख मिटाने के लिये कोई मसीहा आएगा
आदमी यूं रोज अपने आप को छलता रहा
वक्त को पहचानने में भूल जिसने भी है की
कुछ नहीं वो पा सका, बस हाथ ही मलता रहा
सच यही है, जिंदगी तुम बिन अमावस हो गई
चांद यूं कहने को आंगन में सदा खिलता रहा
जैसे जैसे निष्कपट बच्चे बड़े होते गये
हौले हौले जहर कोई जिस्म में घुलता रहा
कैसे लिखता प्यार की ग़ज़लें मैं उसको देख कर
वो भिखारी रात भर चादर फटी सिलता रहा
सोचता था वो छुएगा अब नई ऊंचाइयां
किन्तु सूरज जाके पश्चिम में यूं ही ढलता रहा
(2122 2122 2122 212)