उर-सागर के मंथन का है हासिल मेरे गीतों में
विष और अमृत दोनों ही हैं शामिल मेरे गीतों में
एक तरफ मैं बातें करता बरछी, तीर, कटारों की
काली का करवाल, साथ में बहते शोणित-धारों की
क्षार-क्षार करने को आतुर दहक रहे अंगारों की
टूट-टूट कर पल-पल गिरते सत्ता के दीवारों की
दूजे पल मैं राह दिखाता भटक रहे नादानों को
सत्य, अहिंसा और प्रेम की मंजिल मेरे गीतों में
कभी प्रीत की डोर बांधती, तो कभी भौंरा आजाद
कभी काल की कुटिल हास है कभी देवता का प्रसाद
बैठ कुटी में कभी लिखा है साग औ’ रोटी का स्वाद
कभी कलम का साथ निभाती है विविध व्यंजन की याद
है एक ओर विज्ञान-जनित नगरों का वैभव विशाल
वहीं खेत औ’ खलिहानों की मुश्किल मेरे गीतों में
शंखनाद कर स्वप्न तोड़ता बरबस तुम्हे जगाता हूं
नयनों में आंसू भर-भर कर रोता और रुलाता हूं
रास-रंग सब छोड़ प्यास के दारुण गीत सुनाता हूं
पर प्यासे अधरों की खातिर ये भी खेल रचाता हूं
जाम, सुराही, साकीबाला, पीनेवालों की टोली
सजी हुई है पूरी-पूरी महफिल मेरे गीतों में