प्यार के धागे से दिल के जख्म सीकर देखना
जी सको तो जिंदगी को यूं भी जीकर देखना
लेखनी तेरी रहेगी तू रहे या ना रहे
खुद को मीरा, सूर, तुलसी, जायसी कर देखना
जब सताए खूब तपती दोपहर जो जेठ की
घोलकर सत्तू चने का आप पीकर देखना
लौट जायेंगी बलायें चूमकर दर को तिरे
हौसलों की मन में चट्टानें खड़ी कर देखना
रोशनी घर में तुम्हारे खुद ब खुद हो जाएगी
तुम घरों में दूसरों के रोशनी कर देखना
रास्ते में फिर सताएंगी नहीं तनहाइयां
दर्दे-दिल से तुम सफ़र में दोसती कर देखना
(गुरूदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से कृत)
जी सको तो जिंदगी को यूं भी जीकर देखना
लेखनी तेरी रहेगी तू रहे या ना रहे
खुद को मीरा, सूर, तुलसी, जायसी कर देखना
जब सताए खूब तपती दोपहर जो जेठ की
घोलकर सत्तू चने का आप पीकर देखना
लौट जायेंगी बलायें चूमकर दर को तिरे
हौसलों की मन में चट्टानें खड़ी कर देखना
रोशनी घर में तुम्हारे खुद ब खुद हो जाएगी
तुम घरों में दूसरों के रोशनी कर देखना
रास्ते में फिर सताएंगी नहीं तनहाइयां
दर्दे-दिल से तुम सफ़र में दोसती कर देखना
(गुरूदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से कृत)
12 comments:
रास्ते में फिर सताएंगी नहीं तनहाइयां
दर्दे-दिल से तुम सफ़र में दोसती कर देखना
बहुत बढ़िया गजल...आभार.
लेखनी तेरी रहेगी तू रहे या ना रहे
खुद को मीरा, सूर, तुलसी, जायसी कर देखना
जब सताए खूब तपती दोपहर जो जेठ की
घोलकर सत्तू चने का आप पीकर देखना
्रोशनी घर में तुम्हारे खुद ब खुद हो जाएगी
तुम घरों में दूसरों के रोशनी कर देखना
रास्ते में फिर सताएंगी नहीं तनहाइयां
दर्दे-दिल से तुम सफ़र में दोसती कर देखना
अब किस किस शेर की दाद दूँ हर एक उमदा है सुबीर जी के हाथ लगे हों फिर गज़ल न अच्छी हो? हो नही सकता। बहुत बहुत बधाई
रवि भैया मज़ा आ गया
लेखनी तेरी रहेगी तू रहे या ना रहे
खुद को मीरा, सूर, तुलसी, जायसी कर देखना
इस शेर के काफिये नें तो चौंका ही दिया
वैसे एक बात बताईये आपको लव हुआ, लव मैरिज भी हो गई उसके बाद भी ये शेर कहाँ से निकल रहे हैं ? :):):)
रास्ते में फिर सताएंगी नहीं तनहाइयां
दर्दे-दिल से तुम सफ़र में दोसती कर देखना
प्यार के धागे से दिल के जख्म सीकर देखना
जी सको तो जिंदगी को यूं भी जीकर देखना
(होली एक अलावा भी कभी कभी मजाक कर लेना चाहिए :):):):)
रविकांत पाण्डेयजी
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई !
हासिल-ए-ग़ज़ल शे'र है…
लेखनी तेरी रहेगी तू रहे या ना रहे
खुद को मीरा, सूर, तुलसी, जायसी कर देखना
वाह !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
रवि साहब
नए काफिये इस्तेमाल किये.....पहले भी आपको पढ़ते रहे हैं मगर इस बार तो लूट लिया आपने.....!
प्यार के धागे से दिल के जख्म सीकर देखना
जी सको तो जिंदगी को यूं भी जीकर देखना
वाह वाह......
लेखनी तेरी रहेगी तू रहे या ना रहे
खुद को मीरा, सूर, तुलसी, जायसी कर देखना
काफिये का जबरदस्त इस्तेमाल......
जब सताए खूब तपती दोपहर जो जेठ की
घोलकर सत्तू चने का आप पीकर देखना
नए शेर का अंदाज़ ....बहुत जँच रहा है दोस्त.
ये शेर भी लाजवाब हैं.....
लौट जायेंगी बलायें चूमकर दर को तिरे
हौसलों की मन में चट्टानें खड़ी कर देखना
रोशनी घर में तुम्हारे खुद ब खुद हो जाएगी
तुम घरों में दूसरों के रोशनी कर देखना
सुन्दर ग़ज़ल के लिए आपको और आपके गुरु दोनों को बधाई....!
आपके शेरियत में जो मिट्टी की महक आती है मैं सबसे पहले तो उस बात केलिए आपको बधाई देना चाहता हूँ... सारे ही अश'आर खूब हैं... आपके चिरपरिचित अंदाज में .... वो सत्तू वाले शे'र का ज़िक्र आपने पहले करा था .... बढ़िया बना है ...
अर्श
जब सताए खूब तपती दोपहर जो जेठ की
घोलकर सत्तू चने का आप पीकर देखना
वाह! अच्छा तरीक़ा बताया आपने.
रवि भाई,
अहा, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है.
मतला "प्यार के धागे से ............." बात को बहुत सहजता से कह रहा है, मिसरा-ए-उला और सानी दोनों अच्छे पिरोये हैं.
अगला शेर "लेखनी तेरी रहेगी............" तो मीलों चलने वाला शेर है. मीरा, सर, तुलसी की कलम को प्रणाम करता ये शेर बेजोड़ है.
कुल मिलाकर आपने एक बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है.
सार्थक रचना। परिकल्पना सम्मान के लिये हार्दिक बधाई!
ek sundar nazm!
रोशनी घर में तुम्हारे खुद ब खुद हो जाएगी
तुम घरों में दूसरों के रोशनी कर देखना.
randomly landed here, but read something different.
रोशनी घर में तुम्हारे खुद ब खुद हो जाएगी
तुम घरों में दूसरों के रोशनी कर देखना.
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