Monday, January 11, 2010

मोबाइल कवि-सम्मेलन, प्रकाश अर्श की मुश्किलें और वेदांत दर्शन का अनोखा प्रयोग

मोबाइल कवि-सम्मेलन यही नाम मुझे सबसे उपयुक्त लग रहा है। इसलिये क्योंकि यह ऐसा आयोजन था जिसमें कवि और श्रोता दोनों ही गतिमान थे। सुबह-सुबह उठना और कहीं जाना तो वैसे ही कष्टकारी होता है, तिस पर जाड़े की सुबह छह बजे। स्नान करके तैयार हुआ और देखा तो बाहर अभी अंधेरा था, पर संकल्प तोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगता इसलिये दांत के असहनीय दर्द से पूरी रात न सो पाने के बावजूद मैंने अपने सहयात्रीद्वय को ये बात बताई नहीं और तय कार्यक्रम के अनुसार हम तीनों अपनी-अपनी द्विचक्रवाहिनी (साइकिल) से रवाना हुये। साढ़े पांच घंटे में हमने लगभग पचास किलोमीटर की दूरी तय की। ये सफ़र विक्रम-बैताल के सफ़र की तरह रोमांचक रहा, फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि विक्रम ने कहानियां सुनी थीं और मुझे कविता सुनने को मिला। मैं, मेरा एक मित्र और नागर कवि, तीन लोग इस कारवां में शामिल थे। आगे बढ़ने से पहले उचित है कि प्रकाश अर्श की मुश्किल भी आपको बताता चलूं जैसा कि ऊपर शीर्षक से आपको कुछ अनुमान हो ही गया होगा। इसे समझने के लिये गुरूभाई गौतमजी के यहां अर्श की टिप्पणी का स्नैपशाट देखें-


अर्श भाई ने ये तो मासूमियत से कह दिया कि अभी मेरी शादी भी नहीं हुई (वैसे इसमें मुश्किल क्या है? उल्टे खुश होना चाहिये!!) पर उसके पीछे की कहानी नहीं बताई। कारण है उनके द्वारा रखी गई विभिन्न शर्तें। उन शर्तों को जानने के लिये कथा के मूल में वापस लौटते हैं। अगर कहीं छठी इंद्रिय नाम की चीज होती है तो उसने मुझे सचेत किया कि कानपुर जैसे शहर में जी टी रोड पर कवि के साथ यात्रा करने का रिस्क नहीं लिया जा सकता इसलिये हमने अपेक्षाकृत शांत शिवली रोड की ओर रूख किया। पूरे रास्ते नागर कवि ने कविता सुनाई और ये बता देना अपना धर्म समझता हूं कि इनका करूण रस पर अद्भुत नियंत्रण है। आपको भरोसा न हो तो कभी रिकार्ड करके सुनवाता हूं। मुझे जो सबसे ज्यादा पसंद आई वो अनुसूया और रत्नावली पर लिखी उनकी करुण रस की कविता, वो बाद में कभी सुनवाता हूं आपको। और भी बहुत कुछ सुनाया उन्होने, कुछ अपना और कुछ दूसरों का लिखा भी। खैर इअनमें कई के मूलकवि का तो मुझे भी पता नहीं पर रचना का आनंद तो लिया ही जा सकता है तो जैसा मैने सुना और जितना ग्रहण किया उसे सामने रखता हूं। सबसे पहले ये कवित्त सुनिये, प्रकाश अर्श से पूरी सहानुभूति रखते हुये-

ब्याह करने को हम, कोटिन उपाय किये
नौ दिन उपवास किये, नव-दुर्गा कालिका
फ़िरो कोऊ आयो नाहीं, फ़ोटु है मंगायो नाहिं
उदयपुर ग्राम में है निज की अट्टालिका
हारिन दुःखारी होय, तौल में न भारी होय
सुघर सुनारी होय, जैसे शुभ्र तारिका
खांसे तो खमाज राग, हंसे तो हिंडोल लसे
रोवत में रामकली, ऐसी होय गायिका
नृत्य में नवीन होय, ताल में प्रवीन होय
रूप-रंग अंग में, सुअंग होय नायिका
नोटन की गड्डी से, खेलें हम कबड्डी नित
नागर कवि ठाठ से मनावें दीपमालिका
(एक दो पंक्तियां छूट गई हैं)

मैं तो नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखने वाले प्रकाश अर्श से इतना ही कहूंगा कि इतनी ज्यादा शर्तें रखोगे तब तो इस जन्म में कोई नहीं मिलने वाली। आइये इस संस्मरण का पारायण वेदांत दर्शन के इस अनोखे प्रयोग से करते हैं-

देखकर वेदांत-दर्शन आ गया है होश कुछ
कर्म कैसे भी करो, लगता न तुमको दोष कुछ

प्रेम से सत्संग,प्रवचन, कीरतन में जाइये

छांट करके खूबसूरत चप्पलें ले आइये

बात हंसने की नहीं, ये कल्पना कोरी नहीं

सब प्रभु की वस्तु जग में, इसलिये चोरी नहीं


आज इतना ही, शेष फ़िर कभी।

16 comments:

राज भाटिय़ा said...

साढ़े पांच घंटे में हमने लगभग पचास किलोमीटर की दूरी तय की। इस से अच्छा पेदल ही चले जाते, कविता ओर लेख बहुत सुंदर लगे, लेकिन सईकिल की रफ़तार धीमी
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बहुत साईकलिंग हो गई भई कविता सुनते...


प्रेम से सत्संग,प्रवचन, कीरतन में जाइये
छांट करके खूबसूरत चप्पलें ले आइये
बात हंसने की नहीं, ये कल्पना कोरी नहीं
सब प्रभु की वस्तु जग में, इसलिये चोरी नहीं

-हा हा!! ये सूत्र भी सॉलिड है.

राकेश खंडेलवाल said...

अब कहीं इ नाहिं है जावे कि दूसरे प्रकरन में गामन लगें

जीत लिये जग के सब जंग
ई फ़क्कड़ उमर कटी सो कटी
सग के संग खूब पटी हमरी
इक जोरू के संग पटै न पटी
हाय विधाता ! मेरी तकदीर
क्यों गाड़ी के गियर सी पलटी
हम सौं कम ते कम बीस गुनी
हरयाने की भैंस गले लपटी

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम से सत्संग,प्रवचन, कीरतन में जाइये
छांट करके खूबसूरत चप्पलें ले आइये
बात हंसने की नहीं, ये कल्पना कोरी नहीं
सब प्रभु की वस्तु जग में, इसलिये चोरी नहीं

बहुत ही अच्छी बात लिखी है ....... अमल कर के देखना पढ़ेगा .....

कंचन सिंह चौहान said...

वाह वाह वाह वाह वाह

अच्छा किया बालक को बात बिगड़ने के पहले सलाह दे दी वरना हम तो ननद के सारे नेगों से हाथ धो बैठने को तैयार थे....!!!! :) :)

गौतम राजऋषि said...

हा! हा!! दिलचस्प पोस्ट रवि....अर्श के कमेंट का इंतजार रहेगा।

इस मोबाइल कवि-सम्मेलन का आइडिया बहुत भाया मुझे। सोचता हूँ, कभी तुम्हारे संग ऐसी ही एक लंबी सायकिल-यात्रा पर निकलूं....जाने कब!

नागर साब की कविता उठाये ले जा रहा हूं राइट क्लीक कापी-पेस्ट द्वारा..एक मेरे करीबी मित्र की खातिर जो कुछ ऐसी ही स्थिति में घिरा हुआ है।

@अर्श,
कहाँ हो प्यारे???

पंकज सुबीर said...

नागर कवि का नायिका वर्णन पूरा पेश किया जाये आनंद आ रहा है । और अर्श जैसे लोगों की चिंता ही न की जाए क्‍योंकि अब इनकी नहीं हो रही तो हम क्‍या करें । कंचन जैसी बहनों और गौतम जैसे भाइयों पर लानत है कि अभी तक एक भी नहीं ढूंढ पा रहे हैं बच्‍चे के लिये । नागर जी की पूरी कविता सुनने के लिये कान की एक अदद जोड़ी व्‍यग्र टाइप की हा रही है । सो सुनाया जाए । पूरी कविता पेली जाए । और धुंआधार पेली जाए ।

पंकज सुबीर said...

और चोरी का वेदांत तो अनोखा ही पेला है । मतलब पेल ही दिये हो । भई सारे ब्‍लाग चोरों के लिये आपने रास्‍ता खोल दिया है । सो हम भी गौतम की तरह से ही प्रभु की वस्‍तु को कापी पेस्‍ट करके ले जा रहे हैं ।

Ankit said...

रवि जी, अर्श भाई की सारी शर्तों को बहुत अच्छे ढंग से आपने रख दिया है, मेरी सलाह अर्श भाई को है की अब जहाँ भी रिश्ते की बात करें एक बार ये गाकर ज़रूर सुनाये, सारी शर्ते लयबद्ध हो जाएँगी.
@ गुरु जी, अगर कंचन दी और गौतम भैय्या अर्श भाई की शादी के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो आपको ये ज़िम्मेदारी लेनी पड़ेगी, अब आप मुह नहीं मोड़ सकते.

"अर्श" said...

हा:) हा :) हा :) बाप रे ... ये क्या हो रहा है ... :) :)
हाँ गुरु जीने सही कहा के बातूनी बहना और गौतम भाई पर लानत है
मगर गुरु जी आप कहां चले ,.. अपनी जिम्मेवारी से पीछे नहीं हट सकते
आप भी अंकित ने सही कहा है ,.. एक बैचलर ही दुसरे की दर्द को
समझ सकता है ... :) :) शाबाश अंकित ...
@बातूनी बहना ऐसे कैसे बड़ी ननद होने के अपने क्रतब्या का निर्वाह
किये बगैर और ननद की नेग लिए बगैर पीछा छुड़वाने पे हो...अपने
क्रतब्या का पूर्ण निर्वाह करो आपके नेग का हम ख़याल रखेंगे ... :)

@मेजर साब गोलियां सिर्फ उधर ही चलेंगी या मेरे पे भी किसी की
नज़रों के तीर चलवाने वाले हो अरे कुछ तो शर्म कर लो मेरे भाई बहनों
मेरी खातिर ... :) :) हा हा हा
@ गुरु जी ऐसे कैसे चले जा रहे हो आप ... मानता हूँ ये लोग आप आप से
छोटे हैं नहीं कर पाए कुछ मेरे लिए मगर आप .. आप तो ऐसे नहीं जा सकते
वरना भाभी जी से बात करनी पड़ेगी मेरे लिए कुछ नहीं कर रहे इसको
लेकर ... :) :)
@अंकित असल दर्द तुही समझा है मेरे भाई .... :) :)
@ रवि भाई कमाल कर दिया आपने इस वर्णन के लिए मेरे पास
शब्द नहीं हैं... वो मोबाईल यात्रा पर मैं भी संग चलना पसंद करूँगा
हिंदी के चंद खुबसूरत शब्द सिखने के लिए ... और नगर कवी का सच में
चोरी वाली रचना मैं भी सहेज के रख लेता हूँ...
मैं मारे हसी के लोट पोट हो रहा हूँ ...
सच में जब मैं गौतम भाई पर वो टिपण्णी कर रहा था तो मैं समझ
भी नहीं पाया था के इसका इस्तेमाल कहीं और होने वाला है इस
खूबसूरती के साथ हा हा हा ... गलती हो गयी मालिक....
अब देखता हूँ बहन जी , गौतम भाई , रवि भाई या फिर गुरु जी मेरे लिए
कुछ करते हैं टफ कम्पीटीशन है आप सभी का एक दुसरे के साथ
हा हा हा ...
शुक्रिया कहूँ रवि जी को के आये हाय ...


अर्श

वीनस केसरी said...

ये भी खूब रही

हा हा हा

सब हान्थ धो कर अर्श भाई के पीछे पडे है और अर्श भाई सब्के पीछे :)

- वीनस

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

रवि भाई, बस मजा आ आया आज तो.

बाकी साथियों और गुरूजी की टिप्पणी पढने के बाद मैं फिलहाल सोचनीय मुद्रा में हूँ..

नागर कवि विशिष्ट प्रकरण याद रहेगा.

- सुलभ

गौतम राजऋषि said...

@अर्श,

लड़की खुद ढ़ूंढ़ो मियां...जवान हो, हसीन हो, ज़हीन हो, अदायें खूब पाले हुये हो...हम ढ़ूढ़ेंगे तो अपने हिसाब से और फिर कहते फिरोगे कि फौजी ने किसके पल्ले बांध दिया। वैसे मुझे लगता तो नहीं कि इन दिलकश अदाओं के साथ दिल्ली जैसे शहर में अभी तक किसी बाला ने तुम्हें अपने मोहपाश में बाँधा नहीं होगा....

गौतम राजऋषि said...

अरे हाँ, रवि तुम्हारी तरही ने फिर से मदहोश किया...उस दिन मोबाइल पे सुन लेने के बाद आज फिर से। खासकर वो महफिल वाला शेर सर को झुकाये खंजर उठाये वाला...

god bless you....और नन्हीं भवानी कैसी हैं?

नीरज गोस्वामी said...

जैसी पत्नी की कल्पना नागर कवि ने की है उस लिहाज़ से उन्हें कम से कम एक दर्ज़न स्त्रियों से शादी करनी पड़ेगी क्यूँ की इतनी विशेषताएं किसी एक स्त्री में मिला असंभव है...बहुत रोचक पोस्ट...देर से आया लेकिन खूब मज़ा आया..
नीरज

श्रद्धा जैन said...

साढ़े पांच घंटे में हमने लगभग पचास किलोमीटर की दूरी तय की। ये सफ़र विक्रम-बैताल के सफ़र की तरह रोमांचक रहा, फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि विक्रम ने कहानियां सुनी थीं और मुझे कविता सुनने को मिला

hahaha vikarma vaitaal sahi upma di hai

aur Arsh ji Goutam ji ki batayi hui ladki mushkil hi hai milna agar na mile to bhi shadi kar lena jaldi se
hahahaha