Thursday, October 1, 2009

रोजी-रोटी के चक्कर ने....

सबसे पहले तो क्ष्मा-प्रार्थी हूं, लंबी अनुपस्थिति के लिये। इस बीच यूं तो काफ़ी कुछ हुआ और मर्मांतक पीड़ा हुई गौतम जी के बारे में जानकर। हां उनकी स्थिति में अपडेट जानकर राहत भी हुआ और ऊपरवाले के प्रति श्रद्धा भी। एक अच्छी बात ये भी है कि गुरूदेव श्री पंकज सुबीर जी पुनः सक्रिय हो गये हैं ब्लागजगत में। तो आइये एक गज़ल पढ़ें जो उनके ही हाथों संवारी गई है फ़िर भी कोई त्रुटि रह गई हो तो वो मेरी अपनी है।


बाज लगे चिड़ियों से डरने
फूंका मंतर जादूगर ने

सच से कितना प्यार है उसको
समझाया उसके पत्थर ने


ढूंढ रहे हल ताबीजों में
अक्‍ल गई क्‍या चारा चरने

बाबूजी की उम्र घटा दी

रोजी-रोटी के चक्कर ने

पाप बढ़ा जब हद से ज्‍यादा

तब फूंकी लंका वानर ने

धरती ने जब ज़िद ठानी है
मानी हैं बातें अंबर ने


ज़हर भरा है यमुना-जल में
डेरा डाला फ़िर विषधर ने

बांट दिया है इन्‍सानों को
मंदिर, मस्ज़िद, गिरिजाघर ने

कौन उठाये अब गोवर्धन

धमकाया फ़िर है इंदर ने

रिश्वत से इंकार किया तो

बरसों लटकाया दफ्तर ने

धर्म बिका जब बाज़ारों में
पीट लिया माथा ईश्वर ने

15 comments:

सुशील छौक्कर said...

हमेशा की तरह बेहतरीन ग़जल लिखी है आपने। आपकी ग़जलों सच्चाईयाँ छिपी होती है।
बाबूजी की उम्र घटा दी
रोजी-रोटी के चक्कर ने

बहुत खूब।

Udan Tashtari said...

बाज लगे चिड़ियों से डरने
फूंका मंतर जादूगर ने


-बहुत बढ़िया. बेहतरीन गज़ल! अब नियमित हो जायें.

Himanshu Pandey said...

बेहद खूबसूरत गजल ! धन्यवाद !

तीसरा शेर जरा फिर से देख लें !

Creative Manch said...

ढूंढ रहे हल ताबीजों में
अक्‍ल गई क्‍या चारा चरने
बाबूजी की उम्र घटा दी
रोजी-रोटी के चक्कर ने
धर्म बिका जब बाज़ारों में
पीट लिया माथा ईश्वर ने


बहुत उम्दा ....वाह ..वाह
बेहतरीन ग़जल

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

Mumukshh Ki Rachanain said...

बहुत बढ़िया. बेहतरीन गज़ल!
बहुत खूब।

www.cmgupta.blogspot.com

Mishra Pankaj said...

रविकांत जी भावुकता भरी रचना बधाई

"अर्श" said...

छोटी बह'र की ग़ज़ल भारी पढ़ गयी मियाँ , क्या खूब चुन चुन के अश'आर निकाले हैं आपने ऊपर मतला खुद कहर बरपा रहा है किस शे'र पे खडा हो कर दाद ना दूँ सोच भी नहीं सकता बिलेलान होकर खूब दाद कुबुलें ... गौतम भाई ठीक हो रहे है बात हुई है मेरी उनसे ... अल्लाह मिया जल्द से जल्द दुरुस्तगी बख्शे .. आमीन

अर्श

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद

पंकज सुबीर said...

अच्‍छी और सच्‍ची ग़ज़ल । बाबूजी वाला शेर तो ग़जब का है । एक अच्‍छी रचना के लिये बधाई ।

संजीव गौतम said...

बाज लगे चिड़ियों से डरने
फूंका मंतर जादूगर ने

सच से कितना प्यार है उसको
समझाया उसके पत्थर ने

बहुत प्यारे शेर आये हैं रवि भाई. खूब लिखो यूं ही लिखो.

रंजना said...

धर्म बिका जब बाज़ारों में
पीट लिया माथा ईश्वर ने

..बहुत बहुत सुन्दर रचना....हर शेर सुन्दर,लाजवाब !!!

admin said...

सत्य की अलग जगाती हुई शानदार गजल।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

गौतम राजऋषि said...

छोटी बहर में कयामत ढ़ाते अशआर....बाबूजी वाला शेर तो अप्रतिम है...और काफ़िये के रूप में "इंदर" के इस्तेमाल ने अचंभित कर दिया, रवि।

बहुत खूब!!!

Unknown said...

धरती ने जब ज़िद ठानी है
मानी हैं बातें अंबर ने

ज़हर भरा है यमुना-जल में
डेरा डाला फ़िर विषधर ने

bahut pasand aye ye sher