सदा वही मैं गीत सुनाऊं, तुमने चाहा है मुझसे
पर ये कहता सत्य सृष्टि का, प्रेम तो हर पल नया है
हर ठौर उसी का वास अगर, एक ठौर फिर बंधना क्या
दोनों भरते हैं जीवन को धूप-छांह से बचना क्या
आग, हवा, पानी पर भाई, जब कोई प्रतिबंध नहीं
लक्ष्मण-रेखा खींच-खींचकर मेरा-मेरा जपना क्या
अलग-अलग हैं रूप-रंग पर गुण तो एक समाहित है
प्यास धरा की मिटे, इष्ट हो, मत कहें बादल नया है
ठहराव निशानी जड़ता की, गति जीवन की परिभाषा
नील गगन के पंछी को पिंजरे से कैसी आशा
किसी कली का किसी भ्रमर से आजीवन संबंध रहे
है ये केवल पागल मन की, रूग्ण, सशंकित अभिलाषा
कल-कल, कल-कल बहते रहना सहज नियम है धारा का
आप न बदलें रोज नाम पर रोज गंगाजल नया है
पर ये कहता सत्य सृष्टि का, प्रेम तो हर पल नया है
हर ठौर उसी का वास अगर, एक ठौर फिर बंधना क्या
दोनों भरते हैं जीवन को धूप-छांह से बचना क्या
आग, हवा, पानी पर भाई, जब कोई प्रतिबंध नहीं
लक्ष्मण-रेखा खींच-खींचकर मेरा-मेरा जपना क्या
अलग-अलग हैं रूप-रंग पर गुण तो एक समाहित है
प्यास धरा की मिटे, इष्ट हो, मत कहें बादल नया है
ठहराव निशानी जड़ता की, गति जीवन की परिभाषा
नील गगन के पंछी को पिंजरे से कैसी आशा
किसी कली का किसी भ्रमर से आजीवन संबंध रहे
है ये केवल पागल मन की, रूग्ण, सशंकित अभिलाषा
कल-कल, कल-कल बहते रहना सहज नियम है धारा का
आप न बदलें रोज नाम पर रोज गंगाजल नया है
13 comments:
बहुत अच्छी और महकी-महकी कविता/गीत है
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
सत्य कहा समय परिवर्तनशील है...कल कल बहती समय की धार का हर राह नया है.....
बहुत ही सुन्दर रचना ...
उम्दा भाव
उम्दा शब्द !
अत्यन्त सौम्य और प्यारा गीत,,,,,,,,,,,,,,,बधाई !
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_______विनम्र निवेदन : सभी ब्लोगर बन्धु कल शनिवार
को भारतीय समय के अनुसार ठीक 10 बजे ईश्वर की
प्रार्थना में 108 बार स्मरण करें और श्री राज भाटिया के
लिए शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हेतु मंगल कामना करें..........
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सुंदर कविता है भाई..
बहुत सुंदरतम भावाभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
पारेम तो हर पल नया है....!
बार बार पढ़ रही हूँ ... और सोच रही हूँ, इस वाक्य का विस्तार कितना अधिक है...! प्रेम ही नया है या पात्र भी नया है हर पल..?? और अगर पात्र भी नया ही है तो उस प्रेम की सीमा क्या है..??? रूप क्या है ?? पुनः पुनः सोच रही हूँ, इस सुंदर गीत के आयाम क्या क्या है ?
आग, हवा, पानी पर भाई, जब कोई प्रतिबंध नहीं
लक्ष्मण-रेखा खींच-खींचकर मेरा-मेरा जपना क्या
बहुत सुन्दर विचार हैं आपके. इसी लिये आपकी हर रचना शानदार होती है. बहुत अच्छा गीत हुआ है. पढकर सुकून हुआ.
हर ठौर उसी का वास अगर, एक ठौर फिर बंधना क्या
दोनों भरते हैं जीवन को धूप-छांह से बचना क्या
आग, हवा, पानी पर भाई, जब कोई प्रतिबंध नहीं
लक्ष्मण-रेखा खींच-खींचकर मेरा-मेरा जपना क्या
बेहतरीन लगी ये पंक्तियाँ..
किसी कली का किसी भ्रमर से आजीवन संबंध रहे
है ये केवल पागल मन की, रूग्ण, सशंकित अभिलाषा
हाँ इस विचार से शायद सब की सहमति ना हो .. खासकर जो प्रेम की अमरता के सिद्धांत पर यक़ीन करते हैं।
तुम्हारी हर रचना हम तक, तुम्हारे पाठकों तक सही भाव ही संप्रेषित करती है,रवि-इतना तो यकीन जानो।
पहले तो तरही में हासिले-मुशायरा शेर के लिये खूब सारी बधाई...फिर उस मेल के लिये नवाजिश-करम-शुक्रिया-मेहरबानी...और फिर अब ये गीत जो मेरी तारिफ़ों से ऊपर है।
कैसे लिख लेते हो इतना सुंदर, हर बार यही सवाल करता हूँ तुम्हारा लिखा कुछ भी पढ़ कर।
तुम्हारी हर रचना हम तक, तुम्हारे पाठकों तक सही भाव ही संप्रेषित करती है,रवि-इतना तो यकीन जानो।
पहले तो तरही में हासिले-मुशायरा शेर के लिये खूब सारी बधाई...फिर उस मेल के लिये नवाजिश-करम-शुक्रिया-मेहरबानी...और फिर अब ये गीत जो मेरी तारिफ़ों से ऊपर है।
कैसे लिख लेते हो इतना सुंदर, हर बार यही सवाल करता हूँ तुम्हारा लिखा कुछ भी पढ़ कर।
तरही मुशायरे मे अव्वल आने पर बधाई.
आईना तो दिखा दिया. अब दर्द की दवा भी बताएँ.
वाह shabdon में जैसे jaadoo daal दिया है आपने ........... shashvat रचना है.......... kalkal bahti huye ......... लाजवाब kalpana
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