Saturday, August 15, 2009

बहुत हुई पूजा देवों की, कर दो मूर्त्ति विसर्जन आज...

स्वतंत्रता दिवस मनाने का मेरा अपना ही ढंग है। सच कहूं तो भारत के संबंध में मुझे दिनकर जी की बात याद आती है जो कहते हैं-मानचित्रों में नहीं हृदय में शेष कहीं भारत है। चाहता हूं, प्रेम के गीत लिखूं पर जब अपने भारत को देखता हूं, जब देखता हूं इसके सामाजिक वैषम्य को...तो फिर कलम कुछ और ही लिखने लगती है। इसलिये मेरी रचनाओं में हमेंशा एकस्वर नहीं आ पाता बल्कि उसमें सृजन और विध्वंस दोनों का समावेश है। मेरे एक गीत की दो पंक्तियां हैं-

उर-सागर के मंथन का है हासिल मेरे गीतों में
विष और अमृत दोनों ही हैं शामिल मेरे गीतों में

खैर पूरा गीत कभी बाद में। अभी तो आपके लिये एक बिल्कुल नई रचना सामने रखता हूं।आल्हा में लिखी गई है। स्वतंत्रतादिवस पर इसके सिवा और क्या दूं आपको-


तुम्हे रूला जो हंसते, उनको, करना होगा क्रंदन आज
बहुत हुई पूजा देवों की, कर दो मूर्त्ति विसर्जन आज

भीख नहीं स्वीकार हमें है चाहे दाता हो भगवान
नहीं चलेगा झोपड़ियों का महलों के हाथों अपमान
सुनो स्वर्ग के ठेकेदारों भय का जुटा रहे सामान
होनी की परवाह करे कब जिसने रखी हथेली जान

कड़क रही ये बिजली देखो है भीषण घन गर्जन आज
दम लेगा सर्वस्व बहाकर क्रोधातुर है सावन आज

छला गया जो युगों युगों तक निशिदिन करके कपट प्रहार
आज डटा है समरभूमि में दुर्जय लिये हाथ तलवार
रणचंडी को भेंट चढ़ाता काट काट मुंडों के हार
खंडित मायाजाल तुम्हारा ओ निर्दय हो जा तैयार

मना रहे जो जश्न सुनें वे इंद्रजीत के प्रियजन आज
बूटी दी है स्वयं काल ने जाग उठा फिर लछिमन आज

12 comments:

संजीव गौतम said...

भावों के अनुकूल छन्द के चयन ने गीत को जो ओज दिया है वह अद्भुत है. बहुत अच्छा गीत हुआ है. बधाई

दिगम्बर नासवा said...

Ravi ji.........
Naman hai meraa is vidrohi, desh prem ki bhaavna samete kavi ko....... kalam se chingaariya nikalte dekh raha hun aur vishvaas ho raha hai man mein vi bhaarat ka bhavishy ujwal hai aap jaise youva logon ke rahte.... bahoot hi sateek, adhbudh shabd sanyojan hai aapki rachna mein jo keval bhaavna hone par hi likha ja sakta hai......

रंजना said...

Ojpoorn atisundar geet .....

Geet ke bhaav aur prawhmayta dono hi man ko bandhte hain aur swar me swar milane ko badhy karte hain....

"अर्श" said...

GURU BHAAEE AAPKI ISI AUR AISI HI LEKHANI KE TO HAM KAYAL HAIN.. KYA KHUB LIKHTE HAI AAPN /... HINDI KE SHABDO AUR USAKAA MISHRAN UFFF KAMAAL KA HOTA HAI AAPKA ... YE TEWAR BHI KHUB PASAND AAYAA ... BEHAD KHUBSURAT BAAT KAHI HAI AAPNE PURI TARAH SE OJ PURNA BAAT ... BAHUT BAHUT BADHAAYEE AAPKO...


ARSH

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

sandhyagupta said...

Bahut khub.Likhte rahiye.

नीरज गोस्वामी said...

रवि जी इस ओज पूर्ण रचना की जितनी तारीफ की जाये कम है...बधाई..
नीरज

हरकीरत ' हीर' said...

छला गया जो युगों युगों तक निशिदिन करके कपट प्रहार
आज डटा है समरभूमि में दुर्जय लिये हाथ तलवार
रणचंडी को भेंट चढ़ाता काट काट मुंडों के हार
खंडित मायाजाल तुम्हारा ओ निर्दय हो जा तैयार

ओज पूर्ण रचना.....बधाई..!!

Manish Kumar said...

तुम्हे रूला जो हंसते, उनको, करना होगा क्रंदन आज
बहुत हुई पूजा देवों की, कर दो मूर्त्ति विसर्जन आज

भीख नहीं स्वीकार हमें है चाहे दाता हो भगवान
नहीं चलेगा झोपड़ियों का महलों के हाथों अपमान
सुनो स्वर्ग के ठेकेदारों भय का जुटा रहे सामान
होनी की परवाह करे कब जिसने रखी हथेली जान

अच्छी लगी ये पंक्तियाँ...

गौतम राजऋषि said...

तुम्हारी हिंदी, तुम्हारा शब्द-भंडार, तुम्हारा वाक्य-विन्यास, तुम्हारे छंद..सब के सब मुझे अचंभित करते हैं रवि...

एक अप्रतिम रचनाकार को जग जल्द ही जानने वाला है।

तनिक समय निकाल कर मुझे मेल में "आल्हा" की बाबत जानकारी दोगे?

योगेन्द्र मौदगिल said...

बहुत सुंदर रचना है मेरे भाई.... बधाई..

Urmi said...

वाह बहुत बढ़िया लगा! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !