छीनकर मिरी नींदें रातभर जगाता है
दिल का हाय जख्मों से कौन सा ये नाता है
इश्क की गली सूनी पर अजब है दीवाना
लेके फूल हाथों में अब भी रोज आता है
रोशनी सी होती है रोज मन के आंगन में
कौन है जो चुपके से दीप ये जलाता है
अब तो उससे मिलने को धड़कनें मचलती हैं
दूर कोई गीतों में नाम ले बुलाता है
होश कुछ है राजाओं, दीन जिसको समझे हो
तीन डग में वामन वो, जग को नाप जाता है
द्वारका ना मथुरा में और ना अयोध्या में
वो तो बस मिरे मन में अब धुनी रमाता है
सांस सबकी रुक जाएं, और हवाएं थम जाएं
धीरे धीरे दिलबर यूं घूंघटा उठाता है
देखकर रजा उसकी रो पड़ा सितमगर भी
चोट जो लगे तो रवि और मुस्कुराता है
दिल का हाय जख्मों से कौन सा ये नाता है
इश्क की गली सूनी पर अजब है दीवाना
लेके फूल हाथों में अब भी रोज आता है
रोशनी सी होती है रोज मन के आंगन में
कौन है जो चुपके से दीप ये जलाता है
अब तो उससे मिलने को धड़कनें मचलती हैं
दूर कोई गीतों में नाम ले बुलाता है
होश कुछ है राजाओं, दीन जिसको समझे हो
तीन डग में वामन वो, जग को नाप जाता है
द्वारका ना मथुरा में और ना अयोध्या में
वो तो बस मिरे मन में अब धुनी रमाता है
सांस सबकी रुक जाएं, और हवाएं थम जाएं
धीरे धीरे दिलबर यूं घूंघटा उठाता है
देखकर रजा उसकी रो पड़ा सितमगर भी
चोट जो लगे तो रवि और मुस्कुराता है
18 comments:
इश्क की गली सूनी पर अजब है दीवाना
लेके फूल हाथों में अब भी रोज आता है
होश कुछ है राजाओं, दीन जिसको समझे हो
तीन डग में बामन वो, जग को नाप जाता है
सांस सबकी रुक जाएं, और हवाएं थम जाएं
धीरे धीरे दिलबर यूं घूंघटा उठाता है
देखकर रजा उसकी रो पड़ा सितमगर भी
चोट जो लगे तो रवि और मुस्कुराता है
रवि भाई ये शेर ख़ास पसंद आये
मक्ता तो आपने ऐसा कह दिया है की पढ़ कर दिल बाग़ बाग़ हो गया
तुम तो ठहरे परदेशी की धुन पर गा कर देखा तो और भी मज़ा आया :)
खूबसूरत गजल के लिए बधाई स्वीकार करें
वीनस केसरी
बहुत खूब रवि जी!
इश्क की गली सूनी पर अजब है दीवाना
लेके फूल हाथों में अब भी रोज आता है
रोशनी सी होती है रोज मन के आंगन में
कौन है जो चुपके से दीप ये जलाता है
बेहतरीन रवि जी...वाह...क्या बात है...शायरी में निखार साफ़ झलक रहा है...बधाई.
नीरज
मुझे तो पूरी गज़ल ही बहुत अच्छी लगीसांस सबकी रुक जाएं, और हवाएं थम जाएं
धीरे धीरे दिलबर यूं घूंघटा उठाता है
देखकर रजा उसकी रो पड़ा सितमगर भी
चोट जो लगे तो रवि और मुस्कुराता है
लाजवाब शेअर हैण बहुत बहुत बधाई
संभवत: आने वाले पन्द्रह दिनों और कम्प्यूटर से दूर रहूंगा । आज अचानक बैठा तो ये पोस्ट दिखी । अच्छे प्रयोग हैं । बधाई ।
द्वारका ना मथुरा में और ना अयोध्या में
वो तो बस मिरे मन में अब धुनी रमाता है
रवि जी............ सारे शेरोन में गज़ब की रवानी है.......... गा लिया मैंने तो 'हम तो ठहरे परदेसी " की धुन मैं और कहीं भी नहीं लगा लय में नहीं है ........ बहुत ही उमड़ शेर हैं ..... नए नए विचारों के साथ बुने हुए......
Gahre bhaav hainaapkee rachnaa men.
{ Treasurer-S, T }
काफी दिनों के बाद पढा आपको पर आनंद आ गया रवि जी। सुन्दर प्यारे शब्दों से लिखी ग़जल।
देखकर रजा उसकी रो पड़ा सितमगर भी
चोट जो लगे तो रवि और मुस्कुराता है
वाह वाह....
रोशनी सी होती है रोज मन के आंगन में
कौन है जो चुपके से दीप ये जलाता है
बहुत प्यारा शेर बहुत ख़ूब रवि भाई बहुत ख़ूब.
इश्क की गली सूनी पर अजब है दीवाना
लेके फूल हाथों में अब भी रोज आता है
होश कुछ है राजाओं, दीन जिसको समझे हो
तीन डग में बामन वो, जग को नाप जाता है
सांस सबकी रुक जाएं, और हवाएं थम जाएं
धीरे धीरे दिलबर यूं घूंघटा उठाता है
देखकर रजा उसकी रो पड़ा सितमगर भी
चोट जो लगे तो रवि और मुस्कुराता है
रचना का शिल्प बेहद प्रभावपूर्ण है...गहरे भावों को अभिव्यक्त करती गजल बहुत सुन्दर बन पड़ी है...गुरुदेव ने बधाई दे दी तो अब शायद ही कुछ कहने की गुंजाईश बचती है..
प्रकाश पाखी
इश्क की गली सूनी पर अजब है दीवाना
लेके फूल हाथों में अब भी रोज आता है
रोशनी सी होती है रोज मन के आंगन में
कौन है जो चुपके से दीप ये जलाता है
waah bahut hi lajawab gazal,ye sher bahut pasand aaye.
Ghazal ka shilp to aapka humesha hi damdaar rahta hai par is baar utna anand nahin aaya jitna aksar aapki ghazlon ko padhkar aata hai. Waise ye sher sabse achcha laga
होश कुछ है राजाओं, दीन जिसको समझे हो
तीन डग में बामन वो, जग को नाप जाता है
सांस सबकी रुक जाएं, और हवाएं थम जाएं
धीरे धीरे दिलबर यूं घूंघटा उठाता है
इस एक शे'र के बारे में क्या कहूँ हुजूर आपको दिल से आह वाह निकल रहा है ,... बहोत ही बारीकी से कही है आपने ये शे'र कुछ बही कहना आसान नहीं है .... पूरी ग़ज़ल को लूट के रख लिया एक शे'र ने.. कमाल की अदायगी है इसमें आपकी... बहोत बहोत बधाई..
अर्श
behatareen ghazal. achchha laga
प्रिय रवि बामन को वामन कर लो ।
होश कुछ है राजाओं, दीन जिसको समझे हो
तीन डग में बामन वो, जग को नाप जाता है
द्वारका ना मथुरा में और ना अयोध्या में
वो तो बस मिरे मन में अब धुनी रमाता है
सांस सबकी रुक जाएं, और हवाएं थम जाएं
धीरे धीरे दिलबर यूं घूंघटा उठाता है
kya khoob hai ye teeno sher... chuki mythological poetry mera priya vishay hai, isliye Vaman vala sher kuchh adhik pasand aya...!
aap ko kya kahe, aap to hamesha hi achchha likhte hai
विलंब से आया रवि...एक बेहतरीन ग़ज़ल फिर से तुम्हारी लेखनी की।
लाजवाब मतला...
वामन के मिथक का जबरदस्त प्रयोग शेर में..वाह!
धीरे-धीरे दिलबर वाले शेर पर बरबस मुस्कुरा उठा।
और मक्ता..तो बस हाय रेssssssss
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना काबिले तारीफ है!
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