Saturday, March 28, 2009

घर हमारे कभी यार आते नहीं

कबीर ने कहा है- कबीरा संगत साध की ज्यों गंधी को वास। जो कछु गंधी दे नहीं तो भी वास सुवास॥ लेकिन यहां तो न सिर्फ़ गुरूदेव पंकज सुबीर जी का साथ मेरे मन को सुवासित करता करता है बल्कि निरंतर कुछ न कुछ प्राप्त भी कर रहा हूँ।तो आप सहज अनुमान लगा सकते हैं कि मेरा इस सौभाग्य पर इतराना लाजिमि है। पढ़िए उन्ही के आशीर्वाद की छांव में पली एक गज़ल।

घर हमारे कभी यार आते नहीं
भी जाएं तो नजरें मिलाते नहीं

प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं

आज के आदमी को लगा रोग क्‍या
ना हंसाती खुशी गम रुलाते नहीं


सामने साग हो जो विदुर का रखा
कृष्‍ण को भोग छप्‍पन सुहाते नहीं

चांद में दाग उनको ही आये नजर
चांदनी में कभी जो नहाते नहीं

सूख जाता समंदर तिरी याद का
हम जो आंखों से दरिया बहाते नहीं

शाख से टूटकर जैसे पत्‍ते गिरें
पल भी जीवन के फिर लौट आते नहीं

जब तलक प्रेम की नाव में ना चढ़ो
दर्द की ये नदी पार पाते नहीं

कैसे करता भरोसा खुदा पर कोई
वो अगर रुख से परदा हटाते नहीं

वो भी दोषी हैं जिनको पता तो है पर
नाम कातिल का फिर भी बताते नहीं

11 comments:

सुशील छौक्कर said...

सच आप बेहतरीन गजल लिखते है। पिछली वाली शानदार थी और ये जानदार है।
प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं

आज के आदमी को लगा रोग क्‍या
ना हंसाती खुशी गम रुलाते नहीं

बहुत ही उम्दा।

शोभा said...

सूख जाता समंदर तिरी याद का
हम जो आंखों से दरिया बहाते नहीं

शाख से टूटकर जैसे पत्‍ते गिरें
पल भी जीवन के फिर लौट आते नहीं
वाह बहुत खूब।

गौतम राजऋषि said...

रवि भाई....मान गये उस्ताद....उस्तादों की श्रेणी में आ रहे हैं आप श्‍नैः-श्‍नैः....वाकई
जिस तरह से शेर बाँध रहे हैं आप...क्या कहें
इस शेर पर "सामने साग हो जो विदुर का रखा
कृष्‍ण को भोग छप्‍पन सुहाते नहीं" सलाम

"अर्श" said...

चांद में दाग उनको ही आये नजर
चांदनी में कभी जो नहाते नहीं

रवि भाई बहोत ही शानदार तरीके से आपने अपना हक़ अदा किया है इस ग़ज़ल में हर शे'र इतनी मुलायम है के क्या कहे ऊपर से गुरु देव का आशीर्वाद...
बहोत बहोत बधाई आपको

अर्श

वीनस केसरी said...

क्या बात है रवी भाई
बहुत खूब गजल कही आपने
हम तो आपकी कहन के दीवाने हो गए हैं


venus kesari

वीनस केसरी said...

sorry ravi ke jagah ravee likh diya

pooja said...

bahut badiya likha haa apne

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah..
वाह अच्छी GAZAL के लिये बधाई स्वीकार करें

कंचन सिंह चौहान said...

प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं

प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं

bahut khoob ravi jee...!

Manish Kumar said...

चांद में दाग उनको ही आये नजर
चांदनी में कभी जो नहाते नहीं

sahi hai

Yunus Khan said...

ओह पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आया ।
आपने ही निर्गुण सुनने की फरमाइश की थी ।
मैंने सोचा कि चलो आपको पहचाना जाए ।
आपकी लेखनी अच्‍छी है ।
शेष शुभ