घर हमारे कभी यार आते नहीं
आ भी जाएं तो नजरें मिलाते नहीं
प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं
आज के आदमी को लगा रोग क्या
ना हंसाती खुशी गम रुलाते नहीं
सामने साग हो जो विदुर का रखा
कृष्ण को भोग छप्पन सुहाते नहीं
चांद में दाग उनको ही आये नजर
चांदनी में कभी जो नहाते नहीं
सूख जाता समंदर तिरी याद का
हम जो आंखों से दरिया बहाते नहीं
शाख से टूटकर जैसे पत्ते गिरें
पल भी जीवन के फिर लौट आते नहीं
जब तलक प्रेम की नाव में ना चढ़ो
दर्द की ये नदी पार पाते नहीं
कैसे करता भरोसा खुदा पर कोई
वो अगर रुख से परदा हटाते नहीं
वो भी दोषी हैं जिनको पता तो है पर
नाम कातिल का फिर भी बताते नहीं
आ भी जाएं तो नजरें मिलाते नहीं
प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं
आज के आदमी को लगा रोग क्या
ना हंसाती खुशी गम रुलाते नहीं
सामने साग हो जो विदुर का रखा
कृष्ण को भोग छप्पन सुहाते नहीं
चांद में दाग उनको ही आये नजर
चांदनी में कभी जो नहाते नहीं
सूख जाता समंदर तिरी याद का
हम जो आंखों से दरिया बहाते नहीं
शाख से टूटकर जैसे पत्ते गिरें
पल भी जीवन के फिर लौट आते नहीं
जब तलक प्रेम की नाव में ना चढ़ो
दर्द की ये नदी पार पाते नहीं
कैसे करता भरोसा खुदा पर कोई
वो अगर रुख से परदा हटाते नहीं
वो भी दोषी हैं जिनको पता तो है पर
नाम कातिल का फिर भी बताते नहीं
11 comments:
सच आप बेहतरीन गजल लिखते है। पिछली वाली शानदार थी और ये जानदार है।
प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं
आज के आदमी को लगा रोग क्या
ना हंसाती खुशी गम रुलाते नहीं
बहुत ही उम्दा।
सूख जाता समंदर तिरी याद का
हम जो आंखों से दरिया बहाते नहीं
शाख से टूटकर जैसे पत्ते गिरें
पल भी जीवन के फिर लौट आते नहीं
वाह बहुत खूब।
रवि भाई....मान गये उस्ताद....उस्तादों की श्रेणी में आ रहे हैं आप श्नैः-श्नैः....वाकई
जिस तरह से शेर बाँध रहे हैं आप...क्या कहें
इस शेर पर "सामने साग हो जो विदुर का रखा
कृष्ण को भोग छप्पन सुहाते नहीं" सलाम
चांद में दाग उनको ही आये नजर
चांदनी में कभी जो नहाते नहीं
रवि भाई बहोत ही शानदार तरीके से आपने अपना हक़ अदा किया है इस ग़ज़ल में हर शे'र इतनी मुलायम है के क्या कहे ऊपर से गुरु देव का आशीर्वाद...
बहोत बहोत बधाई आपको
अर्श
क्या बात है रवी भाई
बहुत खूब गजल कही आपने
हम तो आपकी कहन के दीवाने हो गए हैं
venus kesari
sorry ravi ke jagah ravee likh diya
bahut badiya likha haa apne
Wah..
वाह अच्छी GAZAL के लिये बधाई स्वीकार करें
प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं
प्रीत की जोत दिल में जगाते अगर
आप यूं बस्तियों को जलाते नहीं
bahut khoob ravi jee...!
चांद में दाग उनको ही आये नजर
चांदनी में कभी जो नहाते नहीं
sahi hai
ओह पहली बार आपके ब्लॉग पर आया ।
आपने ही निर्गुण सुनने की फरमाइश की थी ।
मैंने सोचा कि चलो आपको पहचाना जाए ।
आपकी लेखनी अच्छी है ।
शेष शुभ
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