तुम्हारी ज़ुल्फ़ें खुली हुई हैं के महकी-महकी हवा चली है
बहारों के दिन नहीं हैं लेकिन खिली खिली आज हर कली है
सुना है किस्मत बदलके रख दे कशिश भरी है नजर किसी की
यहीं पे टूटा गमों से नाता पता है उनकी ही ये गली है
खुदा बचाए ये मेरी हसरत बनी हकीकत न जाने क्या हो
कदम जमीं पर वो रख रही है नमी सी आँखों में जो पली है
सता रहा था किसीको जाड़ा न था उजाला किसीके घर में
इलाज फ़िर से वही है याने अभागी बस्ती लो फ़िर जली है
मिजाज कैसा है कैसी आवारगी हमारी न हाल पूछो
जमाना दुश्मन हुआ करे पर दुआ भला मां की कब टली है
2 comments:
अच्छा प्रयास है. गुरुदेव की सीख पूरी लो, निखार आता चला जायेगा
...आपकी वो गुरूजी वाले होमवर्क पर तरही बेहद पसंद आयी मुझे.मजा आ गया.हम गुरू भाई हुये.मेरे प्रयास पर कुछ कहें प्लीज....
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