Thursday, October 28, 2010

तीन छंद सांस्कृतिक प्रदूषण पर

बिना किसी भूमिका के तीन छंद हाजिर करता हूं, पढ़ें और बतायें-

मानसरोवर मध्य हंस नहीं दिखते हैं

हंस की बजाय वहां कौवे मिलने लगे

फूलों वाली राह पर इतने हैं कांटे आज

पांव गर रखिये तो पांव छिलने लगें

सत्य,अहिंसा, करुणा, प्रेम कौन पूछता है

हिंसा घृणा, वैर के हैं फूल खिलने लगे

भारत की शाखों पर जितने थे पत्ते यारों

पश्चिम की आंधी आई सारे हिलने लगे

सुविचार सद्गुण को देशनिकाला घोषित

भावना को कारागृह देने की तैयारी है

भारतीय संस्कृति सर धुन रोती आज

सभ्यता के नाम पर खेल ऐसा जारी है

इसको बुझा दो बंधु बात बढ़ने से पूर्व

शोला बन जलायेगी अभी जो चिंगारी है

वरना समझ लो ये साफ़-साफ़ कहता हूं

आज मेरा घर जला कल तेरी बारी है

घोर है अंधेरा माना कुछ नहीं सूझता है

काम बस इतना है दीपक जलाइये

साधक सुजान हम ज्ञान के अनादि से हैं

जग में सर्वत्र ज्ञान-ध्वज फहराइये

लीजिये संकल्प वसुधैव कुटुंबकं का

ऊंच-नीच भेद भाव मन से मिटाइये

आइये निर्माण करें हम नये भारत का

मेरे साथ-साथ आप कदम बढ़ाइये

3 comments:

निर्मला कपिला said...

सत्य,अहिंसा, करुणा, प्रेम कौन पूछता है
हिंसा घृणा, वैर के हैं फूल खिलने लगे

भारत की शाखों पर जितने थे पत्ते यारों
पश्चिम की आंधी आई सारे हिलने लगे
आज के भारत का सजीव चित्रण।

इसको बुझा दो बंधु बात बढ़ने से पूर्व
शोला बन जलायेगी अभी जो चिंगारी है
बिलकुल सही कहा समस्या को बढने से पहले न रोका गया तो आग बन जायेगी।
वरना समझ लो ये साफ़-साफ़ कहता हूं
आज मेरा घर जला कल तेरी बारी है
बहुत खूब।
लीजिये संकल्प वसुधैव कुटुंबकं का
ऊंच-नीच भेद भाव मन से मिटाइये

आइये निर्माण करें हम नये भारत का
मेरे साथ-साथ आप कदम बढ़ाइये
देश प्रेमा और भाई चारे का सन्देश । आपके जज़्बे और लेखनी को सलाम। शुभकामनायें।

राज भाटिय़ा said...

भारत की शाखों पर जितने थे पत्ते यारों

पश्चिम की आंधी आई सारे हिलने लगे
तीनो छंद एक से बढ कर एक,बहुत सुंदर धन्यवाद

कंचन सिंह चौहान said...

भूमिका में कहीं आपके घर से स्टेशन तक गुरू जी से वार्तालाप तो नही आ जायेगा ????