Saturday, October 9, 2010

देविपंचक स्तोत्रं


(चित्र गूगल से साभार)

आप सबको नवरात्रि की शुभकामनायें। कविता, गीत, गज़ल नहीं आज आपके लिये एक स्वरचित स्तोत्र। क्योंकि कविता आदि तो इस ब्लौग पर आप पढ़ते ही रहते हैं, स्तोत्र पहली बार ब्लौग पर दे रहा हूं।

देविपंचक स्तोत्रं


प्रारंभमध्यअवसानविकारहीना
लोकेषु नित्यवरदा परमा प्रसिद्धा
हर्त्री च विघ्नसकलाः नितमोदकर्त्री
आनंदमूर्ति शुभदा अयि विश्वमाते! ॥१॥


मूलं समस्तजगतादिक कारणानां
जानाम्यहं त्वमसि सर्वपुराणवेद्या
सृष्टं त्वयैव हि चराचरविश्वमेतत
अंते च गच्छति लयं त्वयि एव माते ॥२॥


अज्ञानमोहसरितांतरवारि पीत्वा
एका त्वमेव भुवनेश्वरि अद्य स्मरामि
शीघ्रातिशीघ्र हरितुं भवदुःखरोगाः
मातेश्वरी विमल दर्शय रूप मह्यं ॥३॥


ध्याये अहर्निशमहं ममतामयी त्वं
या भुक्तिमुक्तिसततं प्रददाति लोके
आधारचक्रकमले हि अधिष्ठिता च
सेवे सदा शिवप्रिया चरणारविंदौ ॥४॥


प्रातर्तदा भवति मंगल सुप्रभातं
संध्या तदा भवति इष्ट प्रदा सुसंध्या
रम्या निशा च दिवसं हि तदैव रम्यं
जिह्वा यदा जपति नाम तवैव माते॥५॥


स्तोत्ररत्नमिदं दिव्यं द्विजेन रविना कृतः।
सर्वपापविनाशकारी सद्योसिद्धिप्रदायकः॥

3 comments:

Smart Indian said...

धन्यवाद और हार्दिक शुभकामनायें!

राज भाटिय़ा said...

नवरात्रो की आपको भी शुभकामनायें।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

हार्दिक शुभकामनाएँ।