तो ये रहा संक्षिप्त परिचय। अब छंद हाजिर करता हूं, बतायें प्रयास कैसा रहा-
प्रीत की पावन पुस्तक में उसका "रवि" केवल नाम लिखा है
लोचन-तीर चला उसने उर बीच मेरे पयगाम लिखा है
पांव पड़े हैं जहां उसके तहं नूतन मंगल धाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(पयगाम = पैगाम)
नाम उसी का सदा घट भीतर हर्षित आठहुं याम लिखा है
दिव्य यूं शब्द कि मैंने उन्हे रिगवेद, यजुर अरु साम लिखा है
देखि छवी उसकी जो अलौकिक तो छवि को अभिराम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(रिगवेद = ऋग्वेद, यजुर = यजुर्वेद, साम = सामवेद)
मूरत मंदिर की कह उसको बार ही बार प्रणाम लिखा है
प्रेम की बेर खिला चुपके उसने मुझको फिर राम लिखा है
मादक गंध उसे मधुमास की प्रीत बरी इक शाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
लोचन-तीर चला उसने उर बीच मेरे पयगाम लिखा है
पांव पड़े हैं जहां उसके तहं नूतन मंगल धाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(पयगाम = पैगाम)
नाम उसी का सदा घट भीतर हर्षित आठहुं याम लिखा है
दिव्य यूं शब्द कि मैंने उन्हे रिगवेद, यजुर अरु साम लिखा है
देखि छवी उसकी जो अलौकिक तो छवि को अभिराम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
(रिगवेद = ऋग्वेद, यजुर = यजुर्वेद, साम = सामवेद)
मूरत मंदिर की कह उसको बार ही बार प्रणाम लिखा है
प्रेम की बेर खिला चुपके उसने मुझको फिर राम लिखा है
मादक गंध उसे मधुमास की प्रीत बरी इक शाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
9 comments:
क्या भाव भरे हैं……………बेहतरीन , शानदार्।
कृष्ण प्रेम मयी राधा
राधा प्रेममयो हरी
♫ फ़लक पे झूम रही साँवली घटायें हैं
रंग मेरे गोविन्द का चुरा लाई हैं
रश्मियाँ श्याम के कुण्डल से जब निकलती हैं
गोया आकाश मे बिजलियाँ चमकती हैं
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
रवि भाई ब्लॉग जगत में लौटने पर पुन: स्वागत है...आते ही भाव विभोर कर दिया आपने...अहहहहः...इतना आनंद प्राप्त हुआ है के क्या कहूँ...वाह...श्रृंगार रस में भिगो दिया आपने तो...अद्भुत छंद हैं..अद्भुत...मेरी बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत....बधाई स्वीकार करें...
नीरज
बहुत ही सुंदर और लाजवाब.
राधे राधे....जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
पाँव पड़े ... इस एक लाइन में मुझे दंग कर दिया ... आपकी छंदबध रचना के क्या कहने कमाल करते हो आप जब भी आते हो .... पहले तो पढ़ने के बाद ऊपर देखा सुनने की भी ब्यवस्था है फिर आपकी वही वासिम साब वाली आवाज़ में सुन मजा आगया ... बधाई हो जनाब.....
अर्श
बेहतरीन ! जय राधे जय घनश्याम
बहुत सुन्दर....... भाव विभोर कर दिया
बैशाखनंदन सम्मान के लिए ढेर सारी बधाई|
ब्रह्माण्ड
dear ravi
प्रीत की पावन पुस्तक में उसका "रवि" केवल नाम लिखा है
लोचन-तीर चला उसने उर बीच मेरे पयगाम लिखा है
पांव पड़े हैं जहां उसके तहं नूतन मंगल धाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है
अरसे की चुप्पी के बाद फिर से आपने लिखा मगर बहुत अच्छा लिखा.....नरोत्तम दास जी का विस्तार ही लगा ये लेखन...अब रेगुलर हो जाइये तो अच्छा रहेगा .
बहुत सुन्दर!
आप के ज्ञान को प्रणाम .............
ये पढ़ तो पहले ही चुका हूँ मगर कुछ लिखते और कहते नहीं बन पा रहा था,
आप छंद और ग़ज़ल दोनों में माहिर हैं.
"पांव पड़े हैं जहां उसके तहं नूतन मंगल धाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है "
"मूरत मंदिर की कह उसको बार ही बार प्रणाम लिखा है
प्रेम की बेर खिला चुपके उसने मुझको फिर राम लिखा है
मादक गंध उसे मधुमास की प्रीत बरी इक शाम लिखा है
मैंने लिखा निज राधा उसे, उसने मुझको घनश्याम लिखा है"
कुछ कहूँगा तो बहुत कम होगा.......................
Post a Comment