अमर-कथा जो कभी सुनाई शिव ने चुपके उमा-कान में
मुझसे कहते वही कहानी, शुभदे ! चंचल नयन तुम्हारे
रोम-रोम आभारी मेरा तुमने इतना प्यार किया है
दुविधाओं के महाजाल में नीर-क्षीर व्यवहार किया है
तुमको परिभाषित क्या करता ! सभी विशेषण छोटे निकले
पकड़ तर्जनी तेरी मैंने हर दुर्गम पथ पार किया है
मुखर हुई हो जैसे प्रमुदित देवालय की कोई प्रतिमा
वेद-मंत्र से पावन लगते, प्रियंवदे ! ये वचन तुम्हारे
निशिदिन मन की टेर यही है जैसे भी हो प्रिय तुम आओ
तृषित अधर अतिविकल आज हैं आकर सुधा धार बरसाओ
सौंप दिया सब कुछ तुम पर मुझपर मेरा अधिकार कहां है
मैं तो एक बांसुरी जैसा जो चाहो सो गीत बजाओ
खोल हृदय की बंद किवाड़ें, नेह-द्रव्य से भर दो झोली
याचक बनकर आया हूं मैं, प्राणवल्लभे ! भवन तुम्हारे
मुझसे कहते वही कहानी, शुभदे ! चंचल नयन तुम्हारे
रोम-रोम आभारी मेरा तुमने इतना प्यार किया है
दुविधाओं के महाजाल में नीर-क्षीर व्यवहार किया है
तुमको परिभाषित क्या करता ! सभी विशेषण छोटे निकले
पकड़ तर्जनी तेरी मैंने हर दुर्गम पथ पार किया है
मुखर हुई हो जैसे प्रमुदित देवालय की कोई प्रतिमा
वेद-मंत्र से पावन लगते, प्रियंवदे ! ये वचन तुम्हारे
निशिदिन मन की टेर यही है जैसे भी हो प्रिय तुम आओ
तृषित अधर अतिविकल आज हैं आकर सुधा धार बरसाओ
सौंप दिया सब कुछ तुम पर मुझपर मेरा अधिकार कहां है
मैं तो एक बांसुरी जैसा जो चाहो सो गीत बजाओ
खोल हृदय की बंद किवाड़ें, नेह-द्रव्य से भर दो झोली
याचक बनकर आया हूं मैं, प्राणवल्लभे ! भवन तुम्हारे
14 comments:
जबरदस्त अभिव्यक्ति रवि!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
सादर
-समीर लाल 'समीर'
बेहतरीन सशक्त रचना.
दिवाली की मंगल कामना
निशिदिन मन की टेर यही है जैसे भी हो प्रिय तुम आओ
तृषित अधर अतिविकल आज हैं आकर सुधा धार बरसाओ
है सौंप दिया सब कुछ तुम पर मुझपर मेरा अधिकार कहां
मैं तो एक बांसुरी जैसा जो चाहो सो गीत बजाओ
बेहतरीन रचना.
दिवाली की मंगल कामना
बहुत ही सुंदर गीत और दीपावली के लिये एक अनोखी रचना । बधाई तथा दीपावली की शुभकामनाएं ।
निशि दिन खिलता रहे आपका परिवार
चंहु दिशि फ़ैले आंगन मे सदा उजियार
खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से
हिल-मिल मनाएं दीवाली का त्यौहार
रवि जी ........ जबरदस्त, कमाल का लिखा है .......... मधुर गीत है .....
आपको और आपके परिवार में सभी को दीपावली की शुभकामनाएं ...............
सुंदर गीत है !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!
बहुत ख़ूब कहा........
आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की
हार्दिक बधाइयां
अति सुंदर रचना. धन्यवाद
दीपावली पर्व की ढेरों मंगलकामनाएँ!
बहुत ही बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
शुभ दीपावली।
निशिदिन मन की टेर यही है जैसे भी हो प्रिय तुम आओ
तृषित अधर अतिविकल आज हैं आकर सुधा धार बरसाओ
सौंप दिया सब कुछ तुम पर मुझपर मेरा अधिकार कहां है
मैं तो एक बांसुरी जैसा जो चाहो सो गीत बजाओ
खोल हृदय की बंद किवाड़ें, नेह-द्रव्य से भर दो झोली
याचक बनकर आया हूं मैं, प्राणवल्लभे ! भवन तुम्हारे
हम्म्म्म् सुना तो था कि गुंजन जी मायके में हैं.... मगर आपकी एंट्री बैण्ड है और विरह इस पराकष्ठा पर पहुँच गया है ये नही पता था...! :) :)
आपका ये अंदाज़ सदैव ही भाता है मुझे....! अति सुंदर...! कोई नया शब्द नही था प्रशंसा करने को तो थोड़ा सा हँस लिया....! मगर कविता बहुत गंभीर है।
सोचता हूँ तुम्हारे बारे में कि ये लड़का क्या रिसर्च करता होगा उधर उस आई.आई.टी कानपुर के साइंस-लैब में...और हैरान रह जाता हूँ जब सोच की दृष्टि तुम्हारे लिखे गीतों-कविताओं पे आ टिकती है...शब्दों का चयन, वाक्यों का विन्यास, छंदों की महारत, भावों की अभिव्यक्ति...कितनी तारीफ़ करूँ रवि?
बहुत सुंदर गीत बुना है। दोनों बन और मुखड़े के समस्त संबोधन दिल के करीब लगे। तुम्हारे स्वर में सुनने की इच्छा है।
behtar bana hai!
वाह-वाह रवि जी, अभिभूत हो गया इस गीत को पढ़ कर,,,,,, वाह...
पिछली पोस्ट भी कमाल की रही पंकज जी को जन्मदिन की और आपकी शानदार प्रस्तुति की विलंबित बधाई.....
Post a Comment