Saturday, October 10, 2009

जन्मदिन मुबारक हो

११ अक्टूबर १९७५ का दिन है। हवा में चंदन की खुश्बू है, उपवन में फूल झूम रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे पूरी प्रकृतिउत्सव मना रही हो। अभी-अभी एक बालक का जन्म हुआ है। घर में सभी आनंदित हैं, बधाईयों का तांता लगा है।आंगन से सोहर की आवाज आती है (साभार: पिया के गांव) -





इतिहास चुपके से इस क्षण को चिन्हित कर लेता है। बालक धीरे-धीरे बड़ा होता है। किशोरावस्था गई है।किशोर की अभिरूचियां देखकर लगता है जैसे इस तरूण से सरस्वती को कुछ अभीष्ट है। गीत, गज़लों से ऐसालगाव हो गया है मानो गज़ल ही खाना, ओढ़ना, बिछाना जीवन का लक्ष्य हो-


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ग्यारवीं कक्षा में पंहुच चुके इस होनहार युवक को शायरी का कीड़ा काटता है। दिल के मचलते अरमान कागज़ परउतरने लगते हैं। एक असहाय
पेड़ का दर्द -

एक पेड़ बेचारा पेड़, बारिश में भीगता पेड़, गर्मी में सूखता पेड़

इस नौजवान के हृदय में तीर की तरह चुभता है और वहीं से काव्य-यात्रा शुरू होती है। इतिहास फ़िर से इस क्षण कोचिन्हित कर लेता है। मुहब्बत के शेरों ने डायरी के पन्ने भरने शुरू कर दिये हैं। दुश्मन ज़माने की नज़र पड़ती हैऔर सुनने में आता है कि लड़का राह भटक गया है। संदेह है कि किसी मेनका ने इस विश्वामित्र की तपस्या भंग करदी है। अरे यह क्या!! इश्क सर पर हाथ रखे रो रहा है, गज़ल एक कोने में उदास बैठी है। कुटिल आक्षेपों से विकलहोकर खुद ही डायरी को आग लगा दी है और दिनकर जी की पंक्तियां गुनगुना रहा है-

सीखी जगती ने जलन प्रेम पर
जब से बलि होना सीखा
फूलों ने बाहर हंसी और
भीतर-भीतर रोना सीखा

लेकिन कब तक? कहते हैं कला दबाने से और निखरती है।

बंधनों से होकर भयभीत
किन्तु
क्या
हार सका अनुराग ?
मानकर
किस बंधन का दर्प

छोड़ सकती ज्वाला को आग?

शीघ्र ही
देह की देहरी नाम से दूसरी कामायनी अस्तित्व में आती है। पूरी पचास गज़लों के साथपुरूष के अंतरंग संबंधों को आधार बना कर लिखी हैं। ये कच्चे और भावुक कवि मन की अभिव्यक्तियां हैं शायद बीस या इक्कीस साल के युवा मन की -


जिस्म को यूं ही गुनगुनाने दो

मुझको खुद में ही पिघल जाने दो

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जलते हुए गुलमोहर की ठंडी सी छांहें देखीं थीं

साथ किसी के हमने भी तो चांद सी बांहे देखीं थी


शायरी का सफ़र जारी है। स्त्री-पुरूष संबंधों का रहस्य, रोमांच, उलझन लेखनी के विषय बनते हैं और खंड-काव्य तुम्हारे लिये का जन्म होता है।

सौ छंदों में स्त्री पुरुष की प्रणयक्रिया को प्रतीकों के माध्यम सेउकेरने का प्रयास उसी बीसइक्कीस की उम्र में विषय एककिशोर के ‍‍ ‍ प्रथम प्रणय के अनुभव

महाप्रणय के महाग्रंथ का लेखाकरण प्रगति पर था तब

मसी नहीं थी, क़लम नहीं थी किन्‍तु कार्य उन्‍नति पर था तब

तरल हो गईं दो कायाएं मिलकर बनने एक रसायन


कल्पित प्रारूपों पर मानो इच्छित सा निर्माण हुआ था

बोधि वृक्ष की छाया ने फिर योगी को निर्वाण दिया था

सब कुछ विस्‍मृत था, स्‍मृत था केवल प्रणय कर्म निर्वाहन


जगा रहा शमशान निशा में, शव साधक कोई अघोर था

भांति भांति के स्‍वर होते थे, महानिशा का नहीं छोर था

तंत्र, मंत्र और यंत्र सम्मिलित सभी क्रियाएं बड़ी विलक्षण


क्षरण हो रहा था जीवन का बिंदु बिंदु तब उस अनंत में

काल गति स्‍तब्‍ध खड़ी थी सिर्फ मौन था दिग्‍दिगंत में


इस बीच समय का पहिया घूमता है, कैलेंडर के हिसाब से दिसंबर २००० का समय है। इतिहास फ़िर से अपनीडायरी में कुछ लिखता है। शहनाइयां बज रही हैं। कोई कवि डोली में बैठे दुल्हन के मनोभावों को पढ़ने की कोशिशकर रहा है-

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समय आगे बढ़ता है। कठोर साधना ने सरस्वती को प्रसन्न कर दिया है। सरस्वती परी और पंखुड़ी नाम से दोवरदान देती हैं इस समर्पित साधक को। अब लेखनी सिर्फ़ कविताओं/गज़लों तक सीमित नहीं रहना चाहती। नदी, तटबंधों को पार कर आगे बढ़ गई है। लेखक के व्यंग्य लेख चाव से पढ़े जाने लगे हैं। कहानियां पहचान देने लगी हैं। ईस्ट-इंडिया कंपनी के माध्यम से ज्ञानपीठ भी लेखक की प्रतिभा का लोहा मान लेती है। इतिहास कलम उठाताहै और सभी चिन्हित स्थानों के आगे पंकज सुबीर लिख देता है।





13 comments:

"अर्श" said...

गुरु देव को उनके जन्मदिन के इस मुक़द्दस मौके पर इस अदना के तरफ से हजारो साल के एक साल और ये साल हो लाखों में वाली बधाई ,. गुरु जी के बारे में कुछ कहूँ इस लायक तो नहीं हूँ मैं मगर जिस तरह से आपने पोस्ट के जरिये ये बधाई सन्देश दिया है वो भी कबीले तारीफ़ है ... गुरु जी को सादर चरण सपर्श

अर्श

कंचन सिंह चौहान said...

रवि जी आपके द्वारा ऐसा ही कुछ अद्भुत लिखे जाने की उम्मीद थी...! गुरु जी के कुछ अंजान पहलुओं से मिलना अनोखा था...! ये सारी कितबें पढ़ने को मन बेचैन हो गया है..

गुरु जी को पुनः पुनः बधाई

Mishra Pankaj said...

वाहभाई पाण्डेय जी कमाल की लेखनी है आपकी
गुरु देव को उनके जन्मदिन बधाई

दिगम्बर नासवा said...

गुरूदेव पंकज जी...... जन्म दिन की बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ ..... KAMAAL KI LIKHA HAI RAVI JI ..... KAMAAL KA

गौतम राजऋषि said...

रवि तुम्हारी लेखनी...उफ़्फ़्फ़! गुरूदेव कितना गौरवान्वित महसूस कर रहे होंगे अपने शिष्य की लेखनी की धार पर...

इस दिन-विशेष पर इस अनूठे गुरू के लिये ये अप्रतिम अतुलनीय शुभकामना तो है ही, साथ ही हम सब गुरू-भाई, बहनों के लिये विशिष्ट उपहार दिया है तुमने...

राज भाटिय़ा said...

हमारी तरफ़ से भी जन्म दिन की बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ

नीरज गोस्वामी said...

रवि भाई आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी...सच...अरे घबराईये नहीं प्रशंशा कर रहा हूँ...आपने, जितनी आपसे उम्मीद थी, उस से कई गुणा प्रभावशाली शैली में ये लेख लिखा है...कमाल का लेख...यकीनन गुरुदेव आपसे जरूर प्रसन्न हुए होंगे...और ऐसे शिष्य को पा कर भला कौन प्रसन्न नहीं होगा...गुरुदेव शतायु हों और हम जैसे भूले भटकों को हमेशा राह दिखाते रहें ये ही कामना है...

नीरज

पंकज सुबीर said...

रवि बहुत अच्‍छा लिखा है । मन को छूता हुआ । शब्‍दों में चित्र और चित्रों में शब्‍द हैं । जो गीत छांटे है विशेषकर भोजपुरी गीत बहुत सुंदर है । आभार ।

संजीव गौतम said...

कमाल कर दिया रवि भाई. उम्मीद से दोगुना प्रस्तुतिकरण किया है आपने. गज़ब.! बधाई

वीनस केसरी said...

गुरु जी को नमन व जन्मदिन की ढेरों शुभकामना

bahut badhiya likha ravi bhai

venus kesari

Ankit said...

नमस्ते रवि जी,
आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है, यहाँ पर मुझे आने में थोडी देर हो गयी.
गुरु जी को अपनी शुभकामनायें दे चूका हूँ लेकिन आपके माध्यम से भी उनको बहुत बहुत शुभकामनाएं

Udan Tashtari said...

गजब का आलेख मास्साब के जन्मदिन पर. जय हो...मस्साब को एक बार फिर बधाई और आपको भी इस नायाब तोहफे के लिए.

Creative Manch said...

सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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