(फोटो गूगल से साभार)
श्वास की हर ऋचा है, समर्पित तुम्हे
अब कहां शेष रहती, कोई साधना
रूप-जल से नहाकर, नयन तृप्त हैं
हो गई आज पूरी, हर इक कामना
याद दीपक बनी जब, डंसा रात ने
विष से मुक्ति दिलाई, सुमधुर बात ने
छू दिया तुमने और, मैं सोना हुआ
कि मान मेरा बढ़ाया, तेरे हाथ ने
हैं अयाचित सभी सुख, जब मुझको मिले
फ़िर नहीं अब जरूरी, कोई याचना
रात और दिन तुमको, मैं निरखा करूं
ये भी सौभाग्य जो, चरणों में मरूं
तुम पर तन मन औ धन, निछावर है सब
तुम्हारे सिवा कहो, अब किसको वरूं
मैं पूजा की थाली, का एक फूल हूं
पास तुम्हारे रहूं, इतनी प्रार्थना
श्वास की हर ऋचा है, समर्पित तुम्हे
अब कहां शेष रहती, कोई साधना
रूप-जल से नहाकर, नयन तृप्त हैं
हो गई आज पूरी, हर इक कामना
याद दीपक बनी जब, डंसा रात ने
विष से मुक्ति दिलाई, सुमधुर बात ने
छू दिया तुमने और, मैं सोना हुआ
कि मान मेरा बढ़ाया, तेरे हाथ ने
हैं अयाचित सभी सुख, जब मुझको मिले
फ़िर नहीं अब जरूरी, कोई याचना
रात और दिन तुमको, मैं निरखा करूं
ये भी सौभाग्य जो, चरणों में मरूं
तुम पर तन मन औ धन, निछावर है सब
तुम्हारे सिवा कहो, अब किसको वरूं
मैं पूजा की थाली, का एक फूल हूं
पास तुम्हारे रहूं, इतनी प्रार्थना
15 comments:
बहुत सुन्दर प्रार्थना।बहुत बढिया रचना लिखी है बधाई।
samarpan ka itnaasundar geet bahut dinon ki baad padhne ko mila...........
badhaai !
हैं अयाचित सभी सुख, जब मुझको मिले
फ़िर नहीं अब जरूरी, कोई याचना
बहुत खूबसूरत...बहुत ही सुंदर..बहुत ही पवित्र...ऐसी रचनाओं को पढ़ने के बाद समझ में नही आता कि प्रशंसा कैसे की जाये...! खास कर मुझे इस मूड की कविताएं यूँ भऋ बहुत अच्छी लगती है....! ऐसी ही लिखते रहिये रविकांत जी..! आज बहुत सारी दुआएं निकल रही हैं मन से आपके लिये....!
बहुत समय बाद कुछ बढ़िया और नवीव पढने को मिला, धन्यवाद!
काफी खुबसूरती से लिखी गई ......नायाब कविता है ......जितनी भी तारिफ की जाय कम है.
बहुत ही अच्छी कविता हेतु बधाई...!इसे पढ़ कई बचपन में पढ़ी 'पुष्प की अभिलाषा'याद आ गयी.....!
ह्रदय की अतल गहराई से जब उस दाता के लिए प्रेम उदगार prakat हैं तो we sahaj ही सुन्दर हो जाते हैं....
kahna न होगा....anyatam रचना है....
sundar lekhan के लिए shubhkamna.....
सुन्दर प्रभाव शाली शब्दों से रची अनूठी रचना...बधाई रवि जी...
नीरज
वाह! आपने तो भक्तिमय भावनाओं का संचार करा दिया इस कविता में.
मैं पूजा की थाली, का एक फूल हूं
पास तुम्हारे रहूं, इतनी प्रार्थना
वाह इसे कहते है प्रेम ओर भक्ति
धन्यवाद
रवि भाई आपके इस कविता पे अब मैं क्या कहूँ कितनी सफल हिंदी शब्दों का प्रयोग किया है अपने , हिंदी में कवितायेँ लिखनी आसान है मगर शुद्ध हिंदी का परयोग करना कितना कठिन है ये पढ़ के आज पता चल रहा है मगर आपने कितनी मधुरता से इसका प्रयोग अपने इस नायाब कविता में की है उसके लिए दिल बस झूम रहा है ... ढेरो बधाई आपको ...
अर्श
bahut hi sudar geet,
badhai
naveenta hai is rachana me...sahi chitr ke saath aisi peshkash ki hai kaafi asardaar lagi ye rachna
www.pyasasajal.blogspot.com
रात और दिन तुमको, मैं निरखा करूं
ये भी सौभाग्य जो, चरणों में मरूं
तुम पर तन मन औ धन, निछावर है सब
तुम्हारे सिवा कहो, अब किसको वरूं
सुन्दर prarthnaa के swar .............. यह जीवन उनके charno में beete यही aas है
u write awesome in my absence..lov u
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