Friday, May 29, 2009

हौले हौले जहर कोई जिस्‍म में घुलता रहा...

सुनिये एक और गज़ल। गुरूदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद के बिना इसे पूरा करना संभव नहीं था।


मुश्किलों से राह की हंस कर गले मिलता रहा
मैं कि था बस इक मुसाफ़िर उम्र-भर चलता रहा


सत्‍य के उपदेश का व्‍यापार करते जो रहे
झूठ उनके साये में ही फूलता फलता रहा

दुख मिटाने के लिये कोई मसीहा आएगा
आदमी यूं रोज अपने आप को छलता रहा

वक्‍त को पहचानने में भूल जिसने भी है की
कुछ नहीं वो पा सका, बस हाथ ही मलता रहा

सच यही है, जिंदगी तुम बिन अमावस हो गई
चांद यूं कहने को आंगन में सदा खिलता रहा

जैसे जैसे निष्‍कपट बच्‍चे बड़े होते गये
हौले हौले जहर कोई जिस्‍म में घुलता रहा

कैसे लिखता प्‍यार की ग़ज़लें मैं उसको देख कर
वो भिखारी रात भर चादर फटी सिलता रहा


सोचता था वो छुएगा अब नई ऊंचाइयां
किन्तु सूरज जाके पश्चिम में यूं ही ढलता रहा

(2122 2122 2122 212)


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15 comments:

नीरज गोस्वामी said...

सत्‍य के उपदेश का व्‍यापार करते जो रहे
झूठ उनके साये में ही फूलता फलता रहा

सच यही है, जिंदगी तुम बिन अमावस हो गई
चांद यूं कहने को आंगन में सदा खिलता रहा

जैसे जैसे निष्‍कपट बच्‍चे बड़े होते गये
हौले हौले जहर कोई जिस्‍म में घुलता रहा

वाह रवि जी वाह...क्या खूबसूरत शेर कहें हैं आपने इस ग़ज़ल में...सच है गुरु देव के आर्शीवाद से जोर कलम अपने आप ज्यादा हो ही जाता है...आप के निष्कपट बच्चे वाले शेर को पढ़ कर निदा फाजली साहेब का शेर:
छोटे बच्चे के हाथों में चाँद सितारे रहने दो
चार किताबें पढ़ कर ये हम तुम जैसे हो जायेंगे
याद आ गया...एक बार फिर बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई....
नीरज

पंकज सुबीर said...

नीरज जी ने गागर में सागर भर दिया है प्रशंसा का । अच्‍छी ग़ज़ल अच्‍छे शेर ।

सुशील छौक्कर said...

कमाल की ग़ज़ल लिखी है जी। कई शेर तो मर्म को छू गए। वाह।

रंजू भाटिया said...

जैसे जैसे निष्‍कपट बच्‍चे बड़े होते गये
हौले हौले जहर कोई जिस्‍म में घुलता रहा

बहुत खूब ...हर शेर खूबसूरती से कहा है आपने ..बढ़िया

Udan Tashtari said...

दुख मिटाने के लिये कोई मसीहा आएगा
आदमी यूं रोज अपने आप को छलता रहा

--हर शेर पर वाह!! बहुत खूब!!

रंजना said...

Sochti rahi ki koi to sher kam jyada hogi....par aisi koi mili hi nahi..

Har sher par dadon ki jhadi lag gayi....

Kya likha hai aapne...Waah !!

Unknown said...

ek baat kahoon? bura na mano toh kahoon.....
YAAR,MAZA AAGYA..
vakai maza aagya..
JIYO!!!!!

Manish Kumar said...

सच यही है, जिंदगी तुम बिन अमावस हो गई
चांद यूं कहने को आंगन में सदा खिलता रहा

जैसे जैसे निष्‍कपट बच्‍चे बड़े होते गये
हौले हौले जहर कोई जिस्‍म में घुलता रहा

man khush kar diya aapne qamal ke sher lage ye khas taur par

"अर्श" said...

GURU BHAEE KE KYA KAHANE .. KYA KHUB SHE'R NIKALE HAI AAPNE JAB KHUD GURU DEV BHURI BHURI PRASHANSA KAR RAHE HAI TO MERI KYA MAJAAL... AAPKE SHE'RO ME AJIB SI BAAT HOTI HAI JO MAULUKTAA KO LIYE HOTI HAI... AB IS SHE'R KO HI PADHE..

दुख मिटाने के लिये कोई मसीहा आएगा
आदमी यूं रोज अपने आप को छलता रहा

KITNI KHUBSURATI SE AAPNE APNE MAN KI BAAT KAHDI JO SABHI KE LIYE UPYUKT HAI..
DHERO BADHAAYEE
AUR GURU DEV KO SAADAR PRANAAM

ARSH

गौतम राजऋषि said...

तमाम तारिफ़ों से परे...
मतले पे ही अटका रहा कई पलों तक। बहुत सुंदर...हर शेर पे वाह-वाह ! करता उतरता गया और फिर चांद यूं कहने को आंगन में सदा खिलता रहा....आहहा...रवि भाई...सुभानल्लाह !!!

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह पांडे जी वाह... बेहतरीन... बधाई स्वीकारें...

Sajal Ehsaas said...

सोचता था वो छुएगा अब नई ऊंचाइयां
किन्तु सूरज जाके पश्चिम में यूं ही ढलता रहा

ghazab hai...ekdum oonchi aur naayab soch..ye huyee na baat :)

www.pyasasajal.blogspot.com

Bhawna Kukreti said...

BAHUT SUNDAR RACHNA :)

वीनस केसरी said...

रवि भाई एक और सुन्दर गजल पढ़वाने के लिए शुक्रिया
ये शेर ख़ास पसंद आया
वक्‍त को पहचानने में भूल जिसने भी है की
कुछ नहीं वो पा सका, बस हाथ ही मलता रहा

जो भावनाओ में बह कर जीते है उनके लिए सटीक शेर है


वीनस केसरी

कंचन सिंह चौहान said...

सोचता था वो छुएगा अब नई ऊंचाइयां
किन्तु सूरज जाके पश्चिम में यूं ही ढलता रहा

kya perception hai..kavita ki jaan hote haiN vichar aur kahan,in dono par aapki bahut umda pakad hai...! hamesha ki tarah uttam...!

der se aa pane ki kshama..!