Wednesday, May 20, 2009

बस कुछ यूं ही....

एक-दो दिन में नई गज़ल लगाता हूं तब तक कुछ फ़ुटकर आपके लिये हाज़िर है।


(१)
हाथ पर हाथ धरे, बैठे-बैठे सोचते हैं
दैववश अच्छे दिन, सबके ही आते हैं
भाग्यवादी कायरों की, यही है पहचान कि
बाबा वो मलूकदास, मन को लुभाते हैं
जड़-बुद्धि जनता की, दिशाहीन सोच का जी

अवसरवादी नित, फायदा उठाते हैं
धर्म-धुरंधर और, वाहक परंपरा के
नागपंचमी तो हम, रोज ही मनाते हैं

(२)
जब-जब चलाई है, उसने बंदूकें तब
इस्तेमाल अपने ही, कंधे होते आये हैं

लूटपाट आगजनी, धूर्त्तता मक्कारी छल

सदा बड़े लोगों के ये, धंधे होते आये हैं
झूठ की दुकानदारी, बढ़ गई हर ओर
सच के व्यापार सब, मंदे होते आये हैं

आज भी हैं धृतराष्ट्र, सत्ता के आदर्श तभी
शासक सदैव यहां, अंधे होते आये हैं

7 comments:

Udan Tashtari said...

फुटकर भी गज़ब धांसूं है भाई!! आनन्द आ गया.

Smart Indian said...

बहुत खूब!

योगेन्द्र मौदगिल said...

दोनों छंद अच्छे पर अभी समय लगेगा.. शुभकामनाएं..

Manish Kumar said...

aaj ke yug ki sachchai ko in chhandon ke madhyam se ubharne ka shukriya

कंचन सिंह चौहान said...

धर्म-धुरंधर और, वाहक परंपरा के
नागपंचमी तो हम, रोज ही मनाते हैं

bahut khoob Ravikanta Ji....!

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब रवि जी...लिखते रहिये...
नीरज

गौतम राजऋषि said...

बहुत अच्छा प्रयास है रवि जी...आपकी सोच की उड़ान हमेशा मुझे अचंभित करती है