Thursday, April 2, 2009

द्वार तुम्हारे पहुँचा जब मैं.....

सीखने की प्रक्रिया में हूँ और सोचता हूँ कुछ सार्थक लिखूँ , पर कई बार ऐसा होता है जब हृदय का कोई भाव विद्रोह कर उठता है और अक्षरों में ढल जाता है। साहित्य की दृष्टि से ये उत्कृष्ट हो या हो पर इसे लिखकर दिल को अजीब सा सुकून मिलता है।




द्वार तुम्हारे पहुँचा जब मैं धूप दीप नैवेद्य नहीं था
रीत निभाने की खातिर मैं अपने स्वप्न चढ़ा आया

रस छंद और अलंकार की
कठिन तपस्या हुई हमसे
चाहा तो था लेकिन मुक्ति
मिली नहीं अंतर के तम से

भर-भर झोली ले जाते सब रिक्त हस्त मैं क्या करता
रूप तुम्हारा नयनों में भर मैं चुपचाप चला आया

निष्फल श्रम था, पटी नहीं
इच्छाओं की गहरी खाई
किस पथ का लूँ आलंबन
बुद्धि ये सोच नहीं पाई

खोकर वय की पूँजी सारी धर्म-ग्रंथ के पन्नों में
सहज हृदय की भाषा को मैं पावन मंत्र बता आया

14 comments:

"अर्श" said...

BAHOT BADHIYA STHAAYEE KE SAATH LIKHAA HAI AAPNE... BADHAYEE AAPKO..

JAI HO...

ARSH

हरकीरत ' हीर' said...

भर-भर झोली ले जाते सब रिक्त हस्त मैं क्या करता
रूप तुम्हारा नयनों में भर मैं चुपचाप चला आया

waah....!! bhot sundar...!!!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही सरस गीत लिखा है।

गौतम राजऋषि said...

व्याकरण का तो पता नहीं रवि भाई...मगर गीत के शब्द, भाव और प्रस्तुति अकदम अलग और बहुत अच्छी लगी है

Vinay said...

बहुत ही उम्दा सृजन!

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद स्वीकारें.. वाह..

शोभा said...

खोकर वय की पूँजी सारी धर्म-ग्रंथ के पन्नों में
सहज हृदय की भाषा को मैं पावन मंत्र बता आया

बहुत अच्छा लिखा है। बधाई स्वीकारें।

Udan Tashtari said...

सुन्दर छंदबद्ध गीत..अच्छा लगा.

पंकज सुबीर said...

अच्‍छा है गीत एक दो बहुत मामूले से व्‍याकरणीय दोष हैं जो हल्‍की सी हथोड़ी मारने पर दूर हो जायेंगें ।

Harshvardhan said...

bahut sundar..........

अमिताभ श्रीवास्तव said...

pahli baar aapke blog par aaya..
hindi me likhne aour jiske shabdo me apni poornata ke saath ras bhara ho, artho me poora poora aanand ho, esi rachna he..
saadhuvaad aapko

bahut sundar

Anonymous said...

बहुत खूबसूरत क्या बात है

कंचन सिंह चौहान said...

पावन शब्दों में पावन भावों की पावन कृति...! आभार..!

Manish Kumar said...

सुंदर भावों को सुंदर प्रवाह से सजा दिया आपने। बहुत खूब