Thursday, January 1, 2009

यादों का भींगा मौसम


(फोटो गूगल सर्च से साभार)

यादों का भींगा मौसम है
फिर से आंखों में शबनम है

पूजाघर की घंटी जैसी
तेरी पायल की छम छम है

चोर पुलिस नेता या डाकू
कौन यहां अब किससे कम है

मंदिर मस्जिद फिर लड़ बैठे
गलियों में पसरा मातम है

केवल कुर्सी के चक्कर में
ये दुनियाभर की तिकड़म है

छूट गये सब खेल खिलौने
बच्चों के हाथों में बम है

(’तेरा तुझको अर्पण...’ की तर्ज पर गुरूदेव श्री पंकज सुबीर जी को नये साल पर समर्पित)


9 comments:

"अर्श" said...

बहोत खूब लिखा है आपने गुरुदेव को मेरा भी प्रणाम कहियेगा...


अर्श

Prakash Badal said...

आपको नव वर्ष की शुभकामनाएं आपकी ग़ज़ल बहुत खूब है। बधाई।

गौतम राजऋषि said...

क्या खूब कही है...रवि जी,भई वाह और नये साल की आपको ढ़ेरों शुभकामनायें.ईश्वर करे आपके सपनों को संसार मिले और आपकी लेखनी नित यूं ही नये करतब दिखाती रहे

Vinay said...

अत्यन्त सुन्दर! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

Himanshu Pandey said...

"छूट गये सब खेल खिलौने
बच्चों के हाथों में बम है"

प्रासंगिक पंक्तियां, प्यारी गजल. धन्यवाद.

seema gupta said...

पूजाघर की घंटी जैसी
तेरी पायल की छम छम है
'ये शब्द कुछ ख़ास लगे.."
regards

पंकज सुबीर said...

नये साल की शुभकामनायें । ये साल आपका अकेले जीवन का अंतिम वर्ष था आने वाला साल आपको एक नया उपहार देने जा रहा है । इसलिये ये साल आपके लिये खास साल है । ईश्‍वर से प्रार्थना है कि 2009 का वो खास उपहार भी आपकी ग़ज़लों की ही तरह हो । आपका ब्‍लाग अब बहुत अच्‍छा दिखने लगा है फोंट बड़े होने के कारण बेहतर हो गया है । रंग संयोजन भी अच्‍छा है ।

KK Yadav said...

छूट गये सब खेल खिलौने
बच्चों के हाथों में बम है
...बहुत सुन्दर. दिल को छूने वाली पंक्तियां !! कभी हमारे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com) पर भी आयें.

योगेन्द्र मौदगिल said...

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है भाई... भुजभेंट स्वीकारो... wah...