तुझको अपनी कथा सुनाऊँ ऐसा तू अनजान कहाँ है
कोकिला के कंठ से नित सुर तुम्हारा बोलता है
मन के कोने में छिपे सब भेद गहरे खोलता है
उसके पैरों में नर्त्तन जिसने आहट सुनी तुम्हारी
जिसने पी मदिरा नयन की मस्त अबतक डोलता है
तुमसे मिलकर खुश हूँ इतना बाकी अब अरमान कहाँ है
तुझको अपनी कथा सुनाऊँ ऐसा तू अनजान कहाँ है
बिन तुम्हारे साथ के अब है अधूरी हर कहानी
सुख सभी ऐसे हैं जैसे रेत में दिखता है पानी
अल्पकालिक भी मिलन प्राणों मे नवरस घोलता
मर्त्य है संसार तो क्या प्रेम है शाश्वत निशानी
विरह-ज्वारग्रस्त मनुज, औषधि प्रेम समान कहाँ है
तुझको अपनी कथा सुनाऊँ ऐसा तू अनजान कहाँ है
6 comments:
बहुत बेहतरीन बहता हुआ गीत-संपूर्ण लय और प्रवाह में. आनन्द आ गया, गुनगुनाऐ भी संग संग. :)
बिन तुम्हारे साथ के अब है अधूरी हर कहानी
सुख सभी ऐसे हैं जैसे रेत में दिखता है पानी
अल्पकालिक भी मिलन प्राणों मे नवरस घोलता
मर्त्य है संसार तो क्या प्रेम है शाश्वत निशानी
" what a beautiful song with a sweat rythm and imaginary words. liked it"
Regards
क्या बात है रवि जी...इतने दिनों बाद दिखे हो और छा गये इस गीत से.बहुत सुंदर.मजा आ गया.
और मेरी गज़ल की तारिफ़ का शुक्रिया
इतनी खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारें!
Wah..wa
bhai
achhi rachna ke liye badhai
कहाँ हो?
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