 

पिछले दिनों शिवना प्रकाशन, सीहोर से प्रकाशित कवयित्री (डा.) सुधा ओम ढींगरा का काव्य-संग्रह  "धूप से रूठी चांदनी" पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। "धूप से रूठी चांदनी" से सुधा जी के  संवेदनशील व्यक्तित्व का पता चलता है जिसे एक तरफ़ अपनी जड़ों से दूर होने का एहसास है तो  वहीं दूसरी ओर रिश्तों में आया खोखलापन, मानवीय मूल्यों का ह्रास और औरत होने की पीड़ा  उन्हे कचोटती है। उनकी काव्य-सरिता गंगोत्री से समतल तक आने के क्रम में कई घाटों पर  विश्राम करती है जिनमें परिस्थितिवश कहीं मीठा तो कहीं खारा जल विद्यमान है। इस उपवन में  कभी बहार आती है जो नासापुटों को फूलों की मादक गंध का उपहार देती है तो कभी सूनेपन का  एहसास लिये पतझड़ का आगमन भी होता है। इस संग्रह से गुजरना जीवन की छोटी-बड़ी कई  सचाइयों से रूबरू होने जैसा है जिनके प्रति सामान्यतया हमारा ध्यान नहीं जाता या जाता भी है  तो प्रतिस्पर्धा के युग में हम तेजी से आंख मूंदकर आगे बढ़ जाते हैं। यों कहें कि बचपन की  खिलखिलाहट से प्रौढ़ावस्था के गंभीर चिंतन तक, यौवन के अल्हणपन से प्रेम की पाकीजगी तक  और रिश्तों की शून्यता से परिपूर्णता तक जीवन के सारे रंगों को अपने में समेटे हुये है "धूप से  रूठी चांदनी"। सुधा जी ने सोहणी-महिवाल, हीर-रांझा सरीखे ढाई आखर के शाश्वत प्रतिमानों से  लेकर समसामयिक ईराक युद्ध में शहीद सैनिकों, मुख्तारन माई और सुनामी लहरों के उपद्रव तक  हर विषय पर लेखनी चलाई है। हृदय की अतल गहराइयों में विद्यमान संवेदना की स्याही से लिखी  गई इन कविताओं की कई पंक्तियां अनायास मानस-पटल पर अंकित हो जाती हैं। सामाजिक  ताने-बाने में मौजूद विसंगतियों के प्रत्युत्तर में वे कहती हैं-
मैं ऐसा समाज निर्मित करूंगी,
जहां औरत सिर्फ़ मां, बेटी,
बहन, पत्नी या प्रेमिका ही नहीं,
एक इंसान,
सिर्फ़ इंसान हो...
उसे इसी तरह जाना,
पहचाना और परखा जाये।
"कविता और नारी" और "नियति" आदि कवितायें भी प्रभावशाली तरीके से नारी पीड़ा का चित्र  उकेरने में सक्षम हैं। "चांदनी से नहाने लगी..." और "आवाज़ देता है कोई उस पार..." सघन प्रेम  से ओत-प्रोत रचनायें हैं। यत्र-तत्र नये बिंबों का सुंदर प्रयोग पाठकों को बरबस अपने सम्मोहन में  बांध लेता है। यथा-
दिन की आड़ में 
किरणों का सहारा ले 
सूर्य ने सारी खुदाई 
झुलसा दी.
धीरे से रात ने 
चांद का मरहम लगा 
तारों के फहे रख 
चांदनी की पट्टी कर 
सुला दी 
कृति- धूप से रूठी चाँदनी (कविता संग्रह)
कवयित्री- डॉ. सुधा ओम ढींगरा
प्रकाशक- शिवना प्रकाशन , पी.सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंटबस स्टैंड, सीहोर(म.प्र.)
मूल्य- 300 रुपये (20$)
पृष्ठ- 112
 
 





8 comments:
बहुत सुंदर
अच्छा लगा पढ़ कर
मनप्रसन्न ।
छंद मुक्त कविता की मुझे ज्यादा समझ नहीं है
मगर धुप से रूठी चांदनी की कविताओं के भाव मुझे बहुत पसंद आये
सही कहा कि कविता को इतना व्यापक क्षेत्र दिया गया है
जो सराहनीय है
एक उत्कृष्ट संग्रह की बेहतरीन समीक्षा के लिए आभार रवि भाई.. आदरणीय सुधा मैम को बहुत-बहुत बधाई..
रवि भाई,
आपने, "धूप से रूठी चांदनी" की बहुत अच्छी समीक्षा की है, वैसे मैं अभी इसे आधे तक ही पढ़ पाया हूँ, मगर आदरणीय सुधा जी की छंद मुक्त रचनाएँ अपना एक अलग ही प्रभाव रखे हुए हैं, जो पढने में आनंदायी है.
इस हसीन और ऐतिहासिक पल का गवाह मैं खुद रहा हूँ ! रवि भाई सुधा धींगरा दीदी को इस पुस्तक के लिए बहुत बहुत बधाई !इनकी किताबों में छंद मुक्त कवितायेँ जिन्दगी के बेहद करीब हैं जो आपको अपनी सी लगेगी ! और सबसे बड़ी बात यही होती है किसी भी शाईर या
किसी भी कवईत्री के लिए के जो उसे पढ़े उसकी रचना उसकी अपनी तरह लगे ... यही उसकी कामयाबी होती है ...रवि भाई आपने भी इस पुस्तक की समीक्षा बहुत ही खुबसूरत र्तारिके से की है ... बधाई ...
वाकई मैं तो यही कहूँगा एक अगर कोई छंदमुक्त कविता पसंद करता है तो इस पुस्तक को जरुर एक बार पढ़े , और सहेज कर रखे !
अर्श
सुधा दी की रचनाओं का प्रशंसक रहा हूं मैं...
वैसे पुस्तक-समीक्षा तनिक और विस्तार मांगती थी, रवि।
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