यत्रास्ति भोगो न च तत्र मोक्षः
यत्रास्ति मोक्षो न च तत्र भोगः।
श्रीसुंदरी सेवनतत्पराणां
भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव॥
जहां भोग है, वहां मोक्ष नहीं और जहां मोक्ष है वहां भोग नहीं। लेकिन त्रिपुरसुंदरी के आराधक को भोग और मोक्ष दोनों हस्तगत होते हैं। जब सीहोर के बारे में सोचता हूं तो पाता हूं कि " जहां साहित्य है वहां प्रशंसक नहीं और जहां प्रशंसक हैं वहां साहित्य नहीं। लेकिन सीहोर में साहित्य और साहित्य के प्रशंसक दोनों एक ही साथ मौजूद हैं।“ या ऐसा कहें कि जो भोजन स्वादिष्ट होता है वो स्वास्थ्यप्रद नहीं होता और जो स्वास्थ्यप्रद होता है वो स्वादिष्ट नहीं होता। लेकिन सीहोर और उससे भी बढ़कर गुरूदेव का सान्निध्य ऐसा भोजन है जो स्वादिष्ट भी है और स्वास्थ्यप्रद भी। पिछले ८ मई, शनिवार को सुकवि मोहन राय की स्मृति में आयोजित मुशायरे में पद्मश्री और हर दिल अजीज बशीर बद्र जी, पद्मश्री बेकल उत्साही जी, राहत इंदौरी जी समेत कई दिग्गजों से रूबरू होने का मौका मिला। कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं, फिलहाल कुछ छायाचित्र देखें-
१. पद्मश्रीबशीरबद्र जी के साथ २। पद्मश्री बेकल उत्साही जी के साथ
३.नुसरत मेंहदी साहिबा के साथ ४.डा. राहत इंदौरी जी के साथ
अगला दिन गुरूभाई अंकित सफर के नाम रहा। आदरणीय रमेंश हठीला जी ने अंकित के जन्मदिन के उपलक्ष्य में काव्य-गोष्ठी सह भोज रखा-
१.काव्यगोष्ठी २. गुरूदेव के साथ चांडाल चौकड़ी(बायें से अर्श, अंकित, गुरूदेव, वीनस और मैं)
३.मोनिका दीदी अंकित का तिलक करती हुई ४.गुजरात से आई गुलाबपाक मिठाई
चलते-चलते एक मजेदार घटना हुई। सीहोर से भोपाल तक वापसी के तकरीबन घंटे भर के सफर में हम चारों बातें करते हुये आ रहे थे। बातें क्या थीं, शेरों शायरी का दौर चल रहा था। मैंने भी एक मतला और एक शेर पढ़ा-
घर की छत से यूं सरेशाम इशारा न करो
चांद इन शोख घटाओं में छिपा जाता है
चांदनी रात में जुल्फ़ों को संवारा न करो
8 comments:
और आप सीहोर से कामयाब होकर लौटें , हाँ ये अछि बात है के अगली बार आप सिर्फ भोजन के लिए ही सीहोर जाएँ आपकी सेहत तो यही कहती है :) :)... भाभी जी के हाथ का हलवा बहुत मिस कर रहा हूँ आज के दिन... वाकई दूसरा दिन अंकित के नाम रहा , उसका इससे बेहतरी से मनाने वाला जन्म दिन नहीं हो सकता ... वो गुजराती मिठाई वाह स्वाद अभी तक बना हुआ है , और वो बाटी और दाल भी आखिर में मीठे चूरमे के साथ ... गुरु देव का कहना होता है के शाईरी ऐसी कहो के चाय वाला , पान की दूकान वाला भी समझ जाए ,.. और उसमे आपको कामयाबी है जो एक टैक्सी वाला आपका शे;र पसंद करता है यारा शब्द हो सकता है ग़ज़ल का ना हो मगर सुनने में अछा लगता है ... बधाई इस कामयाबी पर...
अर्श
बहुत सुंदर आज की पोस्ट, ओर सभी चित्र भी बहुत अच्छॆ लगे, धन्यवाद
leek chhod teeno chalen
SHAYAR SINGH SAPOOT
aise me kahan ka yaara, kaisa yaara...?
i wish, i could have been there...
जितनी बार पढ़ रहा हूँ..एक तरफ सुनकर खुशी होती है ऐसी सफलता और फिर अपनी मजबूरी, कि पहुँच नहीं सकते, दुखी कर जाती है.
रवि भाई ने जहाँ बात खत्म की वहीं से बात को आगे बढाता चाहता हूँ
इसलिए सबसे पहले "रफीक अहमद" जी के एम्बेसडर में बैतःने की बात....
जब हम सीहोर से निकले तो बड़ा खराब लग रहा था मैंने सोचा जो समय बचा है उसका सदुपयोग किया जाए और रवि भाई अंकित भाई और अर्श भाई से जबरदस्ती कह कह के शेर सुने और टैक्सी में ही लघु मुशायरा आयोजित हो गया :)
टैक्सी चालाक रफीक अहमद भी गदगद हो गये
कह रहे थे इतने साल टैक्सी चलाई,, ऐसा मजा कभी नहीं आया
अब तो आपका ही आसरा है जल्दी से कानपुर बुलाईये :)
रवि भाई,
कुछ कभी ना भूलने वाले लम्हें, रिश्ते हम से जुड़ गए हैं.
आप के शेर ने ख़ुद को सही मायनो में मुकम्मल कर दिया है, रफीक भाई तो आपके दीवाने हो गए थे............
taxi में आयोजित मुशायेरा तो अपने आप में लाजवाब था, एक से बढ़कर एक शेर सुनने को मिले.
शुक्रिया अपनी सीहोर यात्रा के पल यहाँ बाँटने के लिए।
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