Thursday, March 11, 2010

तुझे मुहब्बत बुला रहा हूं....

मित्रों, नमस्कार! बहुत दिनों बाद कोई पोस्ट लिखने बैठा हूं। लीजिये आज पढ़िये एक गीत और बतायें कैसा लगा ? आप चाहें तो मेरी बेसुरी आवाज में भी सुन सकते हैं-



उदास राहों में गा रहा हूं
तुझे मुहब्बत बुला रहा हूं

सुनो अंधेरे के हमनवाओं

मैं एक दीपक जला रहा हूं


वो तोड़ने को कमाल जाने
नहीं दिलों का मलाल जाने

उसे खबर क्या कि दर्द क्या है

जो चोट खाये तो हाल जाने


वो रस्मे नफ़रत निभा रहा है
मैं रस्मे उल्फ़त निभा रहा हूं


भला करूं मैं ये काम कैसे
कि नीम को कह दूं आम कैसे

लगा रहें हैं जो आग घर में

करूं उन्हे मैं सलाम कैसे


वो सच से नज़रें बचा रहे हैं
मैं उनको दरपन दिखा रहा हूं


वो रोयें मेरी भी आंखें नम हों
हमारे गम भी अब उनके गम हों

जो हाथ इक दूसरे का थामें

तो दूरियां भी दिलों की कम हों


कदम बढ़ाएंगे वो भी आगे
कदम अगर मैं बढ़ा रहा हूं

15 comments:

"अर्श" said...

खुबसूरत गीत है आवाज़ पहले कभी सुनी है ऐसी , अरे रे रे हाँ ये तो वसीम साहब की है ... हाँ बिलकुल उसी तरह की है अंदाज भी वही है ... कहूँ तो दिलकश ... बधाई कुबूल करें...


अर्श

अजय कुमार said...

खूबसूरत रचना , पर अफसोस सुन नही पाया

निर्मला कपिला said...

गीत और आवाज जरूर बहुत अच्छी है तभी तो ये अर्श सुबह सुबह आते ही आपके ब्लाग पर आ गये। आज कल कम ही दिखते हैं जनाब किसी ब्लाग पर। बहुत अच्छी लगी रचना भी और आवाज भी। धन्यवाद।

Udan Tashtari said...

आह्हा!! आनन्द आ गया...अर्श ठीक कह गये ...वही अदायगी..सुन्दर गीत...आनन्द आया सुन कर!! बधाई देता हूँ.

अनिल कान्त said...

मज़ा आ गया भाई....

कंचन सिंह चौहान said...

गीत को अच्छा कहना घिसी पिटी बात को दोहराना है। रविकांत के कुछ शब्द जी तो हमेशा ही हजारों शब्दों पर भारी पड़ते हैं।

हाँ गीत सुनना कुछ नया होता मगर आफिस के कंप्यूटर पर तो नही सुनाई दे रहा। घड़ पर फिर ट्राई करती हूँ।

Unknown said...

dont believe dem....rachna to atisunder hai but ur voice..well......

Unknown said...

dont believe dem....rachna to atisunder hai but ur voice..well......

Unknown said...

dont believe dem....rachna to atisunder hai but ur voice..well......

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर आवाज , ओर इस आवाज ने इस सुंदर गजल को चार चांद लगा दिये.
धन्यवाद

Manish Kumar said...

लाजवाब आपकी ये रचना बेहद पसंद आई !

गौतम राजऋषि said...

लीजिये एक और कमाल...इतनी अच्छी आवाज पायी है और इतने दिनों बाद सुना रहे हो। हुक्म है इस वरिष्ठ गुरूभाई का कि आइंदा से तुम्हारी हर रचना तुम्हारी आवाज के साथ लगेगी...

बहुत सुंदर गीत बना है। बहुत सुंदर! विशेष कर पहला बन बहुत भाया।

नीरज गोस्वामी said...

भला करूं मैं ये काम कैसे
कि नीम को कह दूं आम कैसे
लगा रहें हैं जो आग घर में
करूं उन्हे मैं सलाम कैसे

वो सच से नज़रें बचा रहे हैं
मैं उनको दरपन दिखा रहा हूं

वाह वा रवि जी वाह वा....बहुत खूबसूरत रचना और आपका ये बंद तो भाई कमाल का है...बधाई
और किसने कहा आप बेसुरे हैं...बहुत अच्छा गायें है भाई आप...ये प्रयास जारी रखें...

नीरज

शरद कोकास said...

वाह ।

कंचन सिंह चौहान said...

वीर जी... हुक्म का फरमान करते समय दूसरों का भी खयाल रखा करिये ज़रा...!