Saturday, June 6, 2009

राधा और कृष्ण के प्रश्नोत्तर में छिपी प्रेम की एक अनूठी दास्तान

जब-जब प्रेम की बात चलती है कुछ नाम जेहन में अनायास आ जाते हैं। जैसे लैला-मजनूं, शीरी-फ़रहाद, ढोला-मारू आदि। यह भी सच है कि प्रेम की ऐसी भी मिशालें रही हैं जो अपेक्षाकृत कम चर्चित रही हैं-जैसे ऊषा और अनिरुद्ध का प्यार। ऊषा, वाणासुर की लड़की थी और अनिरुद्ध कृष्ण के पौत्र। ऊषा को एक रात सपने में कोई युवक दिखता है और उसकी याद जागने पर भी भूलाये नहीं भूलती। चित्रलेखा, ऊषा की सहेली थी जो संसार के हर पुरूष-स्त्री का चित्र खींचने और उसके बारे में बता पाने की सामर्थ्य रखती थी। फ़िर उसी की मदद से पता चला कि सपने में दिखा युवक अनिरूद्ध है और बात आगे बढ़ी। खैर, ये तो प्रसंगवस थोड़ी बातें कह गया। मूलतः आज आपको एक और ऐसी ही कहानी से परिचित कत्रवाता हूं जो है तो कम चर्चित पर प्रेम की अनूठी मिशाल है। दरअसल मेरे लिये ये सप्ताह अत्यंत व्यस्तता भरा रहा। ऐसे ही मुश्किल क्षण में एक लोकगीत की दो-चार पंक्तियां (पूरी तो याद भी नहीं) अचानक कौंध गई और एक मीठे एहसास से मन भर गया। इस पोस्ट का जन्म इस गीत में छिपे दास्तान से ही हुआ है जो राधा और कृष्ण के प्रश्नोत्तर में निहित है। ये गीत कभी पूरा मिल सका तो सुनवाऊंगा फ़िलहाल तो कहानी का आनंद लीजिये। ऐसा हुआ कि एकबार राधा के मन में संशय हुआ कि कृष्ण बांस की बांसुरी क्यों बजाते हैं? उन्होने कहा कृष्ण से कि आप तो सक्षम हैं, सामर्थ्यवान हैं, अपने लिये सोने की बंशी क्यों नहीं बनवा लेते? ये क्या गरीबों की तरह बांस की बांसुरी.......और फ़िर कृष्ण ने जो उत्तर दिया वह सदियों-सदियों तक सहेजकर रखे जाने योग्य है। हमारे यहां एक जाति होती है-डोम। एक दलित जाति है जहां पुरुउष डोम कहलाते हैं और औरतें डोमिन (राजा हरिश्चंद्र डोम के घर ही बिके थे)। बांस का डाला बनाना, मुर्दे को आग देना जैसे काम डोम ही करते हैं। किसी समय में एक डोमिन कृष्ण से प्रेम कर बैठती है। कहां एक राजा और कहां एक डोमिन! पर प्रेम तो एक बेबूझ पहेली है। यहां वो सब घटित होता है जो समझ और उम्मीद से परे हो। आज तक कौन जान सका है इसे। किसी ने कहा है-

वल्लाह रे ये हुस्न की पर्दागिरी तो देखिये
भेद जिसने खोलना चाहा वो दीवाना हुआ

तो आखिर भेद खुल नहीं पाया। प्रेम के मामले में भी ये सौ फ़ीसदी सत्य है। खैर, तमाम विसंगतियों के बावजूद कृष्ण ने इस प्रेम को स्वीकार किया। और जैसा की हर अमर-प्रेम में होता है, दोनों मिल नहीं पाये। कारण चाहे जो भी रहा हो.....और कृष्ण ने बांस की बांसुरी को हमेंशा के लिये होठों से लगा लिया....कृष्ण बोलते रहे, राधा सुनती रहीं....कई बार सोचता हूं क्या आज कोइ प्रेमी अपनी प्रेमिका के समक्ष खुले मन से किसी और से प्रेम की बात कर पायेगा? और करे भी तो क्या प्रेमिका सहज भाव से स्वीकार कर पायेगी?

11 comments:

Smart Indian said...

धन्यवाद, यह कथा तो पहली बार सूनी.

L.Goswami said...

रोचक और प्रेरक प्रसंग, अगर प्रेम सच्चा हो तब सब सहज हो जाता है.
http://sanchika.blogspot.com/2009/04/blog-post.html

Unknown said...

joyo bhai jiyo.............
bahut achha laga........badhaiyan______

"अर्श" said...

kamaal ki baat kahi hai guru bhaee aapne.... ye rochak baaten uffff... subah subah to man machal gayaa ... bahot bahot badhaayee iske liye...



arsh

नीरज गोस्वामी said...

क्या बात कही है रवि भाई...बहुत खूब..प्रेम की अद्वितीय मिसाल..
नीरज

Vinay said...

सचमुच आनन्ददायक

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर, जब हम प्रेम की सही भाषा जान जायेगे, तो हम सभी से प्रेम करेगे, ओर कहते हुये डरेगे भी नही.

सुरभि said...

अगर कोई किसी से प्रेम करता है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की उसको कभी किसी और से भी प्रेम हुआ था या है या भविष्य में होगा. जब कोई इंसान प्रेम में होता है उसमे सब कुछ समाहित होने की,स्वीकारने की क्षमता आ जाती है.

गौतम राजऋषि said...

अहा..रवि जी, क्या गाथा सुनायी है
संपूर्ण अस्तित्व जैसे प्रेममय हो गया और ऊपर से आपके सुनाने का अंदाज़...सुभानल्लाह!!!

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah Bhai Wah ....

मीनाक्षी said...

बेहद खूबसूरत प्रसंग...सौ फीसदी सच भी..सच्चा प्रेम करने वाले ही ऐसे प्रेम की भाषा समझ पाते हैं..