धरती अंबर सबकी खातिर ख्वाब सुहाने रखता हूँ
अपने होठों पर हरदम आजाद तराने रखता हूँ
मां का प्यार, पिता की सीखें, भूली-बिसरी कुछ यादें
सोने से पहले इन चीजों को सिरहाने रखता हूँ
दर्द ज़मानेवाले आखिर मेरा क्या कर सकते हैं
अपने दिल में खुशियों के अनमोल खजाने रखता हूँ
फूल खिले हैं, चाँद उगा है, कोयल गाती बागों में
तुझसे मिलने के हरदम तैयार बहाने रखता हूँ
अपने पुरखों की तहजीबें आज तलक भी ना भूला
आंगन में चिड़ियों की खातिर अब भी दाने रखता हूँ
अपने अंदर जब झांका तो ये मुझको मालूम हुआ
इक तहखाने के अंदर कितने तहखाने रखता हूँ
उनको दौलत प्यारी है और मुझको प्यार है इन्सां से
दौलत वाले क्या जानें मैं क्या पैमाने रखता हूँ
घर से कोई भूखा वापस जाए ये मंजूर नहीं
कुटिया है छोटी पर दिल में राजघराने रखता हूँ
(गजल का परिवर्तित रूप: गुरूदेव श्री पंकज सुबीर जी के बहुमूल्य सुझाव के बाद )
अपने होठों पर हरदम आजाद तराने रखता हूँ
मां का प्यार, पिता की सीखें, भूली-बिसरी कुछ यादें
सोने से पहले इन चीजों को सिरहाने रखता हूँ
दर्द ज़मानेवाले आखिर मेरा क्या कर सकते हैं
अपने दिल में खुशियों के अनमोल खजाने रखता हूँ
फूल खिले हैं, चाँद उगा है, कोयल गाती बागों में
तुझसे मिलने के हरदम तैयार बहाने रखता हूँ
अपने पुरखों की तहजीबें आज तलक भी ना भूला
आंगन में चिड़ियों की खातिर अब भी दाने रखता हूँ
अपने अंदर जब झांका तो ये मुझको मालूम हुआ
इक तहखाने के अंदर कितने तहखाने रखता हूँ
उनको दौलत प्यारी है और मुझको प्यार है इन्सां से
दौलत वाले क्या जानें मैं क्या पैमाने रखता हूँ
घर से कोई भूखा वापस जाए ये मंजूर नहीं
कुटिया है छोटी पर दिल में राजघराने रखता हूँ
(गजल का परिवर्तित रूप: गुरूदेव श्री पंकज सुबीर जी के बहुमूल्य सुझाव के बाद )
9 comments:
धरती अंबर सबकी खातिर ख्वाब सुहाने रखता हूँ
दुनिया तेरे होठों पर आजाद तराने रखता हूँ
मां का प्यार, पिता की सीखें, भूली-बिसरी कुछ यादें
सोने से पहले ये चीजें मैं सिरहाने रखता हूँ
bhot sunder...!!
swagat hai aapka....!!
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
पांडे जी dil खुश हो गया
देर आयद दुरुस्त आयद
सामान्यतः जो मजा ५ गजलों को पढ़ कर मिलता है वो आपकी एक गजल से आया
यानी ५ गुना पैसा वसूल गजल है
अब पैसा तो लग नहीं रहा है इस लिए कह सकता हूँ की ब्लॉग्गिंग वसूल गजल है
बहुत सुन्दर शेर कहे आपने
बहाने दाने तहखाने पैमाने राजघराने जैसे सदा काफिया इस्तेमाल करके क्या खूब गज कही आपने
देखियेगा गुरु जी से शाबासी मिलेगी
किसी एक शेर के लिए दाद नहीं दूंगा नहीं तो अन्य शेरों की अहमियत कम हो जायेगी जो मुझे कतई मंजूर नहीं होगा
ऐसे ही लिखते रहिये
आपका वीनस केसरी
घर से कोई भूखा वापस जाए ये मंजूर नहीं
कुटिया है छोटी पर दिल में राजघराने रखता हूँ
kya khub likha janab...badhai !!
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गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!
waah waaah waaaaaaah waaaaaaaaaaaah
kya baat hai ravikant ji kis sher ki baat karen har sher ek se badh kar ek...!
उनको दौलत प्यारी है और मुझको प्यार है इन्सां से
दौलत वाले क्या जानें मैं क्या पैमाने रखता हूँ
घर से कोई भूखा वापस जाए ये मंजूर नहीं
कुटिया है छोटी पर दिल में राजघराने रखता हूँ
बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है।
रवि भाई....क्या खूब
कलम की धार एकदम से निखर गयी है शादी के बाद....
लाजवाब ग़ज़ल
बेहतरीन काफ़ियों का प्रयोग
और एकदम अनूठा नायाब अंदाज़
हर शेर..सवा शेर
इस शेर पे भाभी जी की प्रतिक्रिया कैसी रही "फूल खिले हैं, चाँद उगा है, कोयल गाती बागों में/तुझसे मिलने के हरदम तैयार बहाने रखता हूँ"
बहुत ही बेहतरीन कहा है आपने.... एक अरसे के बाद दिल से दाद निकल रही है... वाह भाई वाह... जियो...
वाह रवि भाई दिल खुश कर दिया। हर शेर सुन्दर और खूबसूरत है।
धरती अंबर सबकी खातिर ख्वाब सुहाने रखता हूँ
अपने होठों पर हरदम आजाद तराने रखता हूँ
मां का प्यार, पिता की सीखें, भूली-बिसरी कुछ यादें
सोने से पहले इन चीजों को सिरहाने रखता हूँ
बहुत ही लाजवाब।
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