Sunday, January 11, 2009

मीरदाद की किताब यदि आपने नहीं पढ़ी है तो आप एक अद्भूत आनंद से वंचित हैं

आनेवाली हर पीढ़ी मिखाईल नेईमी की शुक्रगुज़ार होगी जिसने इस किताब को दुनिया के सम्मुख प्रकट किया। मिखाईल नेईमी ’खलील जिब्रान’ के समकालीन थे और जिब्रान नेईमी के एकमात्र दोस्त थे। पहली बार अंग्रेजी में छपने के बाद नेईमी ने ही दुबारा इसे अरबी में प्रकाशित कराया। हिंदी संस्करण का तो मुझे पता नहीं है पर एक बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि श्रेष्ठ कृति भाषा एवं समय से परे होती है। जिन्हे इस बात पर भरोसा न हो वो "मीरदाद की किताब" आजमा सकते हैं। इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है अगर आचार्य रजनीश"ओशो" इसे एकमात्र किताब कहते हैं जो अकथ को कहने में सफल रही है। या फ़िर अमृता प्रीतम के शब्दों में-"यह किताब-मीरदाद-एक ध्वनि है हल्की-सी जो किसी बजती हुई रबाब का पता देती है। जिस तरह बहुत दूर से आती पानी की आवाज़ किसी जगह पानी का पता देती है। रास्ता तो खुद ही तलाशना होता है, उस तक पहुँचने के लिये।" मीरदाद को पढ़ते हुये ऐसा लगता है जैसे उपनिषद गीतों के रूप में ढल गये हों। ज्ञान और माधुर्य का यह अनोखा संगम वाणी का विषय नहीं हो सकता। प्रेम के बाबत मीरदाद कहते हैं-

And whom, or what, is one to love? Is one to choose a certain leaf upon the Tree of life and pour upon it all one's heart? What of the branch that bears the leaf? What of the stem that holds the branch? What of the bark that shields the stem? What of the roots that feeds the bark, the stem, the branches and the leaves? What of the soil embosoming the roots? What of the sun, and sea, and air that fertilize the soil?
किसे प्रेम करें? क्या जीवन-वृक्ष की किसी एक पत्ती पर हृदय का सारा प्रेम उड़ेल दें? उस शाखा का क्या जिसपर वह पत्ती स्थित है? उस तने का क्या जो उस शाखा को संभालता है? उस छाल का क्या जो तने को लपेटे हुये है? उस जड़ का क्या जो छाल, तना, शाखाओं और पत्तियों को भोजन देता है? उस मिट्टी का क्या जो जड़ों को सहारा देती है? उस सूरज, सागर और हवा का क्या जो मिट्टी को उपजाऊ बनाते है?

इस तरह सवाल के एक-एक तह में उतरते हुये मीरदाद कहते हैं अगर एक पत्ती इतने प्रेम की अधिकारिणी है तो पूरा वृक्ष अपनी समग्रता में कितने प्रेम का अधिकारी है? समग्र में से केवल एक टुकड़े को प्रेम करना दुख का कारण होता है। शुष्क तार्किकता पर मीरदाद का कहना है-

Logic is a crutch for the cripple; but a burden for the swift of foot; and a greater burden still for the winged.
तर्क एक वैशाखी है लंगड़ों के लिये लेकिन बोझ है उनके लिये जिनके पैर सही सलामत हैं और उनके लिये तो और भी बोझ है जिनके पास पंख हैं।

4 comments:

कंचन सिंह चौहान said...

Logic is a crutch for the cripple; but a burden for the swift of foot; and a greater burden still for the winged.


baeutiful.....! surely I'll read it.
tahanks ..!

गौतम राजऋषि said...

अद्‍भुत....रवि जी,कुछ और विस्तार से कहिये

और ये आपने बजा फरमाया कि "श्रेष्ठ कृति भाषा एवं समय से परे होती है"

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Khalil Gibran was a Master of thoughts, words & wisdom.
Thank you for this meaningful presentation.
Sorry for this comment in English.
( I'm away from my PC)

सुशील छौक्कर said...

थोडा बहुत जिब्रान जी को तो पढा वो तो गजब का लिखते है। आपने मीरदाद जी से परिचय करा दिया अब इन्हें भी पढेगे। शुक्रिया।