Monday, September 14, 2009

विष और अमृत दोनों ही हैं शामिल मेरे गीतों में

आज हिंदी-दिवस है। हिंदी-दिवस की सार्थकता लंबी-चौड़ी बयानबाजी में नहीं है इसलिये बेहतर है हिंदी में कुछ लिख-पढ़कर इसे मनाया जाये। तो आज पेश है ये गीत आपकी सेवा में, जीवन के विरोधाभासों को समेटे हुये। मैं विध्वंस और सृजन दोनों को जरूरी मानता हूं। खेत से खर-पतवारों को तो हटाना ही है लेकिन, बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती बल्कि, फूलों के बीज भी रोपने हैं। इन्ही दो स्वरों को पिरोने की कोशिश की है-


उर-सागर के मंथन का है हासिल मेरे गीतों में
विष और अमृत दोनों ही हैं शामिल मेरे गीतों में

एक तरफ मैं बातें करता बरछी, तीर, कटारों की

काली का करवाल, साथ में बहते शोणित-धारों की
क्षार-क्षार करने को आतुर दहक रहे अंगारों की

टूट-टूट कर पल-पल गिरते सत्ता के दीवारों की

दूजे पल मैं राह दिखाता भटक रहे नादानों को
सत्य, अहिंसा और प्रेम की मंजिल मेरे गीतों में

कभी प्रीत की डोर बांधती, तो कभी भौंरा आजाद
कभी काल की कुटिल हास है कभी देवता का प्रसाद
बैठ कुटी में कभी लिखा है साग औ’ रोटी का स्वाद
कभी कलम का साथ निभाती है विविध व्यंजन की याद

है एक ओर विज्ञान-जनित नगरों का वैभव विशाल
वहीं खेत औ’ खलिहानों की मुश्किल मेरे गीतों में

शंखनाद कर स्वप्न तोड़ता बरबस तुम्हे जगाता हूं

नयनों में आंसू भर-भर कर रोता और रुलाता हूं

रास-रंग सब छोड़ प्यास के दारुण गीत सुनाता हूं
पर प्यासे अधरों की खातिर ये भी खेल रचाता हूं

जाम, सुराही, साकीबाला, पीनेवालों की टोली
सजी हुई है पूरी-पूरी महफिल मेरे गीतों में

Wednesday, September 2, 2009

चली हवाएं परिवर्त्तन की....

लीजिये एक और कविता पेश है, बिना किसी खास भूमिका के। उम्मीद है आपको पसंद आयेगी।

नींव डोलती राजभवन की
चली हवाएं परिवर्त्तन की
सहमी छाती नील-गगन की
बेला फिर शिव के नर्त्तन की

यह इंद्रजाल अब टूटेगा
बंधन से मानव छूटेगा
हां, फूल नया खिलने को है
धरती, नभ से मिलने को है


तू गीत क्रांति के गाने दे
जग का सुख-चैन मिटाने दे
फसलों की बात भुलाने दे
खेतों को आग उगाने दे


आंसू का मोल चुकाना है
पिछ्ड़ों को आगे लाना है

देखो यह समय बदलता है
अब सूरज नया निकलता है

सत्ता का जोर न रोकेगा
तोपों का शोर न रोकेगा

बादल घनघोर न रोकेगा
झंझा झकझोर न रोकेगा

यह रथ बढ़ता ही जायेगा
सीढ़ी चढ़ता ही जायेगा
मैं पूजन थाल सजाऊंगा
माथे पर तिलक लगाऊंगा

फिर नित-नूतन मंगल होगा
निश्चित ही सुंदर कल होगा